पाकिस्तान, जो अक्सर भारत को धमकियां देता रहता है, आज अपने ही घर में संकट से जूझ रहा है। इस संकट का नाम है बलूचिस्तान, जहां की धरती पर एक ऐसी बेटी ने हुंकार भरी है, जिसकी आवाज से पाकिस्तानी हुकूमत कांप उठती है। यह कहानी है महरंग बलोच की, एक ऐसी महिला की, जिसने बिना हथियार उठाए, सिर्फ अपनी बुलंद आवाज और अहिंसक आंदोलन (Non-Violent Movement) से पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। आइए, जानते हैं कि कौन हैं महरंग बलोच और क्यों उनकी एक पुकार से पाकिस्तान की सत्ता हिल जाती है।
महरंग बलोच: एक साहसी शुरुआतमहरंग बलोच का जन्म 1993 में बलूचिस्तान के एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। पेशे से डॉक्टर, महरंग ने अपनी जिंदगी को मानवता की सेवा के लिए समर्पित किया, लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय किया था। उनके पिता, अब्दुल गफ्फार बलोच, एक मजदूर और वामपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता थे, जो बलूच लोगों के हक की लड़ाई लड़ते थे। साल 2009 में, जब महरंग केवल 16 साल की थीं, पाकिस्तानी सेना ने उनके पिता को कराची में अगवा कर लिया। दो साल बाद, 2011 में उनके पिता का क्षत-विक्षत शव मिला, जिस पर क्रूरता के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। इस दुखद घटना ने महरंग के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। यहीं से उनके दिल में पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ एक ज्वाला भड़की, जो आज बलूचिस्तान की सबसे मजबूत आवाज बन चुकी है।
बलूच यकजेहती समिति: अहिंसा का हथियारमहरंग बलोच ने 2019 में बलूच यकजेहती समिति (Baloch Yakjehti Committee) की नींव रखी, जिसका मकसद बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन (Human Rights Violations), जबरन गायब किए जाने, और हत्याओं के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से आवाज उठाना था। उनकी अगुवाई में बीवाईसी ने छोटी-छोटी जनसभाओं, धरनों, और मार्च के जरिए बलूच समुदाय को एकजुट किया। खास बात यह है कि महरंग ने हमेशा अहिंसा का रास्ता चुना। उनके आंदोलन में न तो हथियार हैं, न ही हिंसा, फिर भी उनकी आवाज इतनी ताकतवर है कि पाकिस्तानी सरकार और सेना के लिए यह एक बड़ा खतरा बन चुकी है। दिसंबर 2023 में, महरंग ने ‘मार्च अगेंस्ट बलोच जेनोसाइड’ का नेतृत्व किया, जो तुर्बत से इस्लामाबाद तक पहुंचा। इस मार्च में हजारों बलूच महिलाएं और युवा शामिल हुए, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना के दमन (State Oppression) के खिलाफ नारे लगाए।
क्यों डरता है पाकिस्तान?महरंग बलोच की ताकत उनके बेबाक भाषणों और साहस में छिपी है। उनके शब्दों में वह आग है, जो बलूचिस्तान के लोगों के दर्द को दुनिया के सामने लाती है। बलूचिस्तान में दशकों से पाकिस्तानी सेना पर जबरन अपहरण, यातनाएं, और हत्याओं के आरोप लगते रहे हैं। वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स के अनुसार, 2009 से अब तक 1500 लोग मृत पाए गए, जबकि 6000 अभी भी लापता हैं। महरंग इन गायब लोगों के परिवारों की आवाज बनकर उभरी हैं। उनकी रैलियों में बलूच महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं, जो रूढ़िवादी समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव है। पाकिस्तान सरकार उनकी बढ़ती लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय समर्थन से घबराई हुई है। हाल ही में, उन्हें 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) के लिए नामांकित किया गया, जिसने उनकी आवाज को वैश्विक मंच पर और मजबूत किया।
निजी दुख से सामूहिक संघर्ष तकमहरंग की जिंदगी आसान नहीं रही। 2017 में उनके भाई का भी अपहरण हुआ, जिन्हें तीन महीने तक यातनाएं दी गईं। हालांकि, 2018 में उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन इस घटना ने महरंग के इरादों को और मजबूत किया। वह कहती हैं, “हर बलोच की हत्या के बाद कई और लोग खड़े होंगे।” उनकी यह बात बलूचिस्तान के युवाओं में जोश भर देती है। मार्च 2025 में, क्वेटा में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान महरंग को गिरफ्तार किया गया, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई। संयुक्त राष्ट्र ने भी उनकी रिहाई की मांग की। उनकी गिरफ्तारी ने बलूच आंदोलन (Baloch Movement) को और तेज कर दिया, और सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में लाखों लोग सामने आए।
महरंग बलोच सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि बलूचिस्तान के लोगों की उम्मीद का प्रतीक हैं। वह न केवल अपने समुदाय के लिए, बल्कि दुनिया भर में मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि साहस और सच की ताकत किसी भी हथियार से बड़ी होती है। पाकिस्तान सरकार भले ही उन्हें दबाने की कोशिश करे, लेकिन महरंग की आवाज अब दबने वाली नहीं है। वह बलूचिस्तान की उस शेरनी हैं, जिसका नाम सुनकर सत्ता के गलियारे कांप उठते हैं।
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