Dehradun News : प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली का खेल अब देहरादून में भी उजागर हो गया है। दून पुलिस ने एक अन्तर्राज्यीय नकल गिरोह के सरगना सहित दो अभियुक्तों को गिरफ्तार कर इस गोरखधंधे का भंडाफोड़ किया है। यह गिरोह पैसे लेकर अभ्यर्थियों के स्थान पर दूसरे लोगों से परीक्षा दिलवाता था। आइए, इस सनसनीखेज मामले की पूरी कहानी जानते हैं।
नकल का नायाब तरीका
यह गिरोह तकनीक और धोखाधड़ी का ऐसा जाल बुनता था कि कोई भी आसानी से उसे पकड़ नहीं पाता। अभियुक्त एक विशेष ऐप का उपयोग कर अभ्यर्थी और उनके स्थान पर परीक्षा देने वाले साल्वर के फोटो को आपस में मिलाकर एक नया फोटो तैयार करते थे। यह फोटो इतना विश्वसनीय होता था कि प्रवेश पत्र पर उसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता था।
इतना ही नहीं, गिरोह फर्जी पैन कार्ड भी बनाता था, जिसे परीक्षा केंद्र पर आईडी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इस बार ओएनजीसी केंद्रीय विद्यालय में आयोजित सीबीएसई सुपरिटेंडेंट भर्ती परीक्षा में बायोमेट्रिक जांच के कारण यह धांधली पकड़ी गई।
कैसे शुरू हुआ खुलासा?
20 अप्रैल 2025 को देहरादून के ओएनजीसी केंद्रीय विद्यालय में सीबीएसई भर्ती परीक्षा आयोजित की गई थी। परीक्षा के दौरान सीबीएसई की निगरानी टीम को एक अभ्यर्थी पर संदेह हुआ। जांच और सख्त पूछताछ में पता चला कि गौतम कुमार पासवान के नाम से परीक्षा देने वाला व्यक्ति कोई और था। इस व्यक्ति ने कबूल किया कि वह आयुष कुमार पाठक है और उसने पैसे लेकर किसी अन्य अभ्यर्थी के स्थान पर परीक्षा दी थी। इस जानकारी के आधार पर दून पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और कैंट कोतवाली में मामला दर्ज किया गया।
गिरोह का मास्टरमाइंड और उसका खेल
पुलिस पूछताछ में आयुष कुमार पाठक ने चौंकाने वाले खुलासे किए। उसने बताया कि वह प्रयागराज में एसएससी की तैयारी कर रहा था, जहां उसकी मुलाकात प्रणव कुमार से हुई। प्रणव इस नकल गिरोह का सरगना था, जो बिहार और झारखंड के अभ्यर्थियों से मोटी रकम लेकर उनके स्थान पर साल्वर से परीक्षा दिलवाता था। प्रणव ने आयुष को तीन लाख रुपये का लालच देकर सीबीएसई सुपरिटेंडेंट परीक्षा में गौतम कुमार पासवान के स्थान पर बैठने के लिए तैयार किया। आयुष ने यह भी स्वीकार किया कि उसने पहले भी दो अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में ऐसा किया था।
सरगना की गिरफ्तारी और बरामदगी
आयुष की निशानदेही पर दून पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रणव कुमार को कोलागढ़ रोड से गिरफ्तार किया। उसके पास से एक लाख रुपये नकद, तीन मोबाइल फोन, एक फर्जी पैन कार्ड, और प्रवेश पत्र बरामद किए गए। प्रणव ने बताया कि उसने गौतम कुमार पासवान के साथ 10 लाख रुपये में सौदा किया था, जिसमें से एक लाख नकद और 25 हजार रुपये पेटीएम के जरिए मिल चुके थे। बाकी राशि गौतम की जॉइनिंग के बाद मिलनी थी। प्रणव ने यह भी कबूल किया कि वह पिछले कई सालों से इस तरह की धांधली कर रहा था और 8-10 अभ्यर्थियों को रेलवे और अन्य केंद्रीय परीक्षाओं में पास करा चुका था।
गिरोह की चालाकी और पुलिस की सतर्कता
यह गिरोह इतना चालाक था कि वह ऑनलाइन फॉर्म भरने से पहले ही अभ्यर्थियों के साथ सेटिंग कर लेता था। फोटो मैनिपुलेशन और फर्जी आईडी के जरिए वे साल्वर को असली अभ्यर्थी के रूप में पेश करते थे। हालांकि, इस बार सीबीएसई की सतर्कता और दून पुलिस की त्वरित कार्रवाई ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। पुलिस अब गौतम कुमार पासवान की तलाश में है, जो इस मामले में वांछित है।
समाज के लिए सबक
यह मामला न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि तकनीक का दुरुपयोग किस हद तक हो सकता है। दून पुलिस की इस कार्रवाई से नकल माफियाओं को कड़ा संदेश गया है कि कानून की नजर से कोई नहीं बच सकता। साथ ही, यह अभ्यर्थियों के लिए भी एक चेतावनी है कि शॉर्टकट अपनाने की कोशिश भविष्य को खतरे में डाल सकती है।
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