राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह इन दिनों सुर्खियों में है। इसके पीछे की वजह हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की याचिका है, जिसमें दावा किया गया है कि अजमेर बाबा की यह दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनाई गई है।जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होनी है।फिलहाल अजमेर दरगाह को लेकर लगातार बहस चल रही है, कई मुस्लिम नेताओं ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि ये सभी दावे खोखले हैं और ऐसा सिर्फ देश का माहौल खराब करने के लिए हो रहा है।
क्या सच है और क्या झूठ?
खैर, क्या सच है और क्या झूठ? इसका फैसला कोर्ट करेगा लेकिन उससे पहले इस दरगाह से जुड़ी खास बातें जान लेते हैं, कहा जाता है कि इस दरगाह से कोई वापस नहीं लौटता और यह हर धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र है।गरीब नवाज के नाम से मशहूर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती सूफी परंपरा के महान संत थे। अजमेर शरीफ सिर्फ मुसलमानों का धार्मिक स्थल नहीं है। यह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, जहां हर धर्म के लोग अपनी मुरादें पूरी करने आते हैं। दरगाह पर हर दिन हजारों लोगों के लिए लंगर (भोजन) तैयार किया जाता है। यह भोजन बिना किसी भेदभाव के सभी को परोसा जाता है। अजमेर शरीफ दरगाह की वास्तुकला इस्लामी और हिंदुस्तानी शैली का अद्भुत मिश्रण है। निजाम गेट नामक मुख्य द्वार इसकी भव्यता को बखूबी बयां करता है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर हर साल उर्स मनाया जाता है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु दरगाह पर आते हैं। यहां आने वाले लोग धागा बांधकर अपनी मुरादें मांगते हैं।
मान्यता है कि ख्वाजा गरीब नवाज की कृपा से हर सच्चे भक्त की मुराद पूरी होती है। मुगल बादशाह अकबर ने संतान प्राप्ति के लिए यहां दुआ मांगी थी। मुराद पूरी होने पर वह पैदल ही दरगाह आए और बाबा की मजार पर चादर चढ़ाई।दरगाह में श्रद्धालु अपनी क्षमता के अनुसार दान देते हैं। इस दान का इस्तेमाल गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए किया जाता है।अजमेर शरीफ वैसे तो पूरे साल खुला रहता है, लेकिन उर्स के दौरान यहां खास भीड़ होती है। अजमेर पहुंचने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग की सुविधा है।
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