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भगवान श्री गणेश की पूजा में सूंड का महत्व: दायीं या बायीं?

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भगवान श्री गणेश का महत्व

लाइव हिंदी खबर :- भगवान श्री गणेश की उपासना से सभी बाधाओं का निवारण होता है। इन्हें विघ्न विनाशक के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के ग्रंथों में श्री गणेश के स्वरूप का कई स्थानों पर वर्णन किया गया है। श्री गणेश को पंच देवों में से एक माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणपति की पूजा का विधान अनिवार्य है।


गणपति की सूंड का महत्व

गणपति को मंगलमूर्ति कहा जाता है, क्योंकि उनके हर अंग में आशीर्वाद और वरदान का संचार होता है, जो जीवन को सही दिशा में चलने का संदेश देते हैं। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार, गणेश की प्रतिमा लाने से पहले यह जानना आवश्यक है कि उनकी सूंड दायीं होनी चाहिए या बायीं।


दायीं सूंड वाले गणपति

गजानन की दायीं सूंड : यदि गणेश की मूर्ति में सूंड दायीं ओर मुड़ी हो, तो इसे दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहा जाता है। दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाती है और इसे शक्तिशाली माना जाता है। इस मूर्ति की पूजा विधि का पालन करना आवश्यक है, जिससे भक्तों को कष्ट नहीं होता।


बायीं सूंड वाले गणपति

गजानन की बायीं सूंड : यदि सूंड बायीं ओर मुड़ी हो, तो इसे वाममुखी कहा जाता है। बायीं ओर चंद्र नाड़ी होती है, जो शीतलता प्रदान करती है। वाममुखी गणपति की पूजा सामान्यतः की जाती है और इन्हें गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना जाता है।


गणपति के अंगों का महत्व

गणपति का बड़ा सिर : गणेश बुद्धि और विवेक का प्रतीक हैं। उनके सिर के दर्शन से भक्तों को बुद्धिमत्ता का वरदान मिलता है।


सूप जैसे कान : गणेश जी के बड़े कान उन्हें गजकर्ण कहते हैं। लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली माने जाते हैं।


भगवान गणेश का बड़ा पेट : गणपति का बड़ा पेट हर स्थिति को सहन करने का गुण देता है।


गजानन की छोटी आंखें : छोटी आंखें चिंतनशीलता का प्रतीक हैं, जो गहराई से अध्ययन करने का संदेश देती हैं।


एकदंत श्री गणेश : भगवान गणेश का एक दांत टूटने के कारण उन्हें एकदंत कहा जाता है। यह हमें सही उपयोग का संदेश देता है।


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