नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन और उसकी वजह से पंजाब जैसे मैदानी इलाकों में बाढ़ की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा, ऐसा लगता है कि पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया है। बेंच ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट में हमने बाढ़ के पानी में लकड़ियों के बड़े बड़े लट्ठ बहते देखे हैं इससे लगता है कि पहाड़ों पर अवैध रूप से पेड़ों की कटाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर और पंजाब राज्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
शीर्ष अदालत ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को भी नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया है। सीजेआई बीआर गवई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि पेड़ों की अवैध कटान बहुत ही गंभीर मामला है। इस पर तुषार मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी।
अदालत ने कहा कि यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा का मामला नहीं है, बल्कि मानव जनित कारणों की वजह से यह संकट सामने आया है। इसकी वजह से जान-माल की भारी क्षति हुई है। आपको बता दें कि पंजाब इस वक्त भीषण बाढ़ की चपेट में है। सतलुज और रावी नदियां उफान पर हैं। बाढ़ की वजह से लगभग साढ़े 3 लाख लोग बेघर हो गए हैं और राहत शिविर में रह रहे हैं। 40 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। यह पंजाब में 1988 के बाद की सबसे बड़ी बाढ़ बताई जा रही है। 1.48 लाख हेक्टेयर जमीन पर खड़ी फसलें बर्बाद हो चुकी हैं।
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