यह कथा न केवल त्रेतायुग की रहस्यमयी घटनाओं का परिचय कराती है बल्कि श्राप और मोक्ष के गहरे संदेश को भी उजागर करती है।
कौन थी मधुरा?
मधुरा स्वर्ग की एक अप्सरा थी, जो अपनी अनुपम सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी। उसकी उपस्थिति इतनी मोहक थी कि देवता और असुर सभी उसके रूप के दीवाने थे। पौराणिक कथाओं में उसे रावण की पत्नी माना गया है। कहते हैं कि मधुरा का हृदय पवित्र था, लेकिन उसकी भगवान शिव के प्रति आकर्षण ने उसे कठिनाइयों में डाल दिया। मधुरा असल में मंदोदरी का ही पिछला जन्म था, अपने नए जन्म में मंदोदरी असुर मयदानव और हेमा की पुत्री थीं।
भगवान शिव पर मोहित होने की कथा
मधुरा नाम की एक अप्सरा, एक बार वह घूमते हुए कैलाश पर्वत पर पहुंच गई। उसने वहां पर भगवान शिव को तपस्या में लीन देखा। भगवान शिव को देखकर उसने कई बार उनकी तपस्या को भंग करने कि कोशिश की परंतु वह अपने काम में असफल हो गई। असल में मधुरा भगवान शिव को देखकर उन पर मोहित हो गई थी। इसी कारण वह उनको तपस्या से जगाना चाहती थी और उनसे बात करना चाहती थी। इतने में वहां पर माता पार्वती पहुंच जाती हैं और अपने पति की तपस्या को भंग होते देखकर वह मधुरा पर क्रोधित हो जाती हैं।
श्राप का परिणाम
माता पार्वती ने मधुरा को श्राप दिया की वह मेंढक बन जाएगी और किसी कुएं में रहेगी। माता पार्वती के क्रोध को देखकर मधुरा उनसे क्षमा मांगने लगती है। वह दुखी मधुरा ने माता पार्वती से गुहार लगाती है, तो माता पार्वती उनसे कहती है कि-तुम तप करके अपने रूप में वापस आ सकती हो। मधुरा ने तप किया और श्राप मुक्त हो गई। इसके बाद वह कुएं से बाहर निकलने के लिए आवाज देती है। उसी जगह पर संतान प्राप्ति के लिए तप कर रहे मायसुर और हेमा मधुरा को बाहर निकालते हैं और उसे गोद ले लेते हैं। वे मधुरा का नाम मंदोदरी रखते हैं और बाद में उसका विवाह रावण से होता है।
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