ढाका: बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाले शासन ने पिछले सप्ताह देश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ 'मानवता के विरुद्ध अपराध' करने का आरोप लगाने का फैसला किया। उसी दिन बांग्लादेश में एक और फैसला पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी के हक में हुआ। जमात-ए-इस्लामी (JEI) की राजनीतिक दल के रूप में पुनः पंजीकृत करने की अनुमति दे दी गई। जमात-ए-इस्लामी ने 1971 के मुक्ति युद्ध में खुलकर पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था। इस बीच विश्लेषकों का कहना है कि शेख हसीना के खिलाफ आरोप और जमात को फिर से चुनावी दल के रूप में मंजूरी मिलने का फैसला एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।
जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण बहाल
बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने रविवार को चुनाव आयोग को इस्लामिक कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण बहाल करने का आदेश दिया, जिससे इसके भविष्य के चुनाव में भाग लेने का रास्ता साफ हो गया। उसी दिन अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरुद्ध आरोप लगाए, जिन्हें जमात-ए-इस्लामी समर्थित हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद 5 अगस्त 2024 को सत्ता से हटा दिया गया था।
जमात के शीर्ष नेता की सजा का फैसला पलटा
पिछले सप्ताह बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने जमात के एक प्रमुख नेता एटीएम अजहरुल इस्लाम की दोषसिद्धि के फैसले को पलटते हुए जेल से आजाद कर दिया। अजहरुल इस्लाम को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बलात्कार, हत्या और नरसंहार के लिए 2014 में मौत की सजा सुनाई गई थी।
1971 युद्ध में जमात ने दिया था पाकिस्तान का साथ
एक विश्लेषक ने नाम न बताने की शर्त पर ईटी से कहा कि यह कोई रहस्य नहीं है कि 1971 के युद्ध के दौरान जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना और कई जमात नेताओं ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों के खिलाफ नरसंहार और अन्य अत्याचारों में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
बांग्लादेश में आईएसआई का मंसूबा हो रहा पूरा
पाकिस्तान बांग्लादेश में अपना प्रभाव फिर हासिल करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में जमात-ए-इस्लामी के पंजीकरण से पाकिस्तान सेना और आईएसआई को ताकत मिलेगी। विश्लेषक ने बताया कि जमात का पाकिस्तान समर्थक रुख और अंतरिम शासन के मुखिया मोहम्मद यूनुस का पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने का रुख एक दूसरे के साथ मिलता है।
जमात-इस्लामी दशकों से बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी (BNP) की सहयोगी रही है। पाकिस्तानी सेना के नरसंहार में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के कारण बांग्लादेश की आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके नेता निर्वासन में विदेश भाग गए थे। उन्हें बीएनपी के संस्थापक और तत्कालीन बांग्लादेश के राष्ट्रपति जनरल जियाउर रहमान ने पुनर्वासित किया था। विश्लेषकों के अनुसार, बाद में बीएनपी के शासन के दौरान उसके सहयोगी के रूप में जमात ने आईएसआई के एजेंडे को आगे बढ़ाने और बांग्लादेश की धरती पर भारतीय विद्रोहियों को जगह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण बहाल
बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने रविवार को चुनाव आयोग को इस्लामिक कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण बहाल करने का आदेश दिया, जिससे इसके भविष्य के चुनाव में भाग लेने का रास्ता साफ हो गया। उसी दिन अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरुद्ध आरोप लगाए, जिन्हें जमात-ए-इस्लामी समर्थित हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद 5 अगस्त 2024 को सत्ता से हटा दिया गया था।
जमात के शीर्ष नेता की सजा का फैसला पलटा
पिछले सप्ताह बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने जमात के एक प्रमुख नेता एटीएम अजहरुल इस्लाम की दोषसिद्धि के फैसले को पलटते हुए जेल से आजाद कर दिया। अजहरुल इस्लाम को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बलात्कार, हत्या और नरसंहार के लिए 2014 में मौत की सजा सुनाई गई थी।
1971 युद्ध में जमात ने दिया था पाकिस्तान का साथ
एक विश्लेषक ने नाम न बताने की शर्त पर ईटी से कहा कि यह कोई रहस्य नहीं है कि 1971 के युद्ध के दौरान जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना और कई जमात नेताओं ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों के खिलाफ नरसंहार और अन्य अत्याचारों में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
बांग्लादेश में आईएसआई का मंसूबा हो रहा पूरा
पाकिस्तान बांग्लादेश में अपना प्रभाव फिर हासिल करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में जमात-ए-इस्लामी के पंजीकरण से पाकिस्तान सेना और आईएसआई को ताकत मिलेगी। विश्लेषक ने बताया कि जमात का पाकिस्तान समर्थक रुख और अंतरिम शासन के मुखिया मोहम्मद यूनुस का पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने का रुख एक दूसरे के साथ मिलता है।
जमात-इस्लामी दशकों से बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी (BNP) की सहयोगी रही है। पाकिस्तानी सेना के नरसंहार में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के कारण बांग्लादेश की आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके नेता निर्वासन में विदेश भाग गए थे। उन्हें बीएनपी के संस्थापक और तत्कालीन बांग्लादेश के राष्ट्रपति जनरल जियाउर रहमान ने पुनर्वासित किया था। विश्लेषकों के अनुसार, बाद में बीएनपी के शासन के दौरान उसके सहयोगी के रूप में जमात ने आईएसआई के एजेंडे को आगे बढ़ाने और बांग्लादेश की धरती पर भारतीय विद्रोहियों को जगह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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