वॉशिंगटन: डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका और भारत संबंध एक गंभीर विश्वास के संकट से जूझ रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप और उनके सिपहसालार लगातार भारत के खिलाफ हमलावर रुख अपनाए हुए हैं। बीते महीने के आखिर में अमेरिका ने भारतीय सामानों के आयात पर 50 फीसदी का भारी टैरिफ लगा दिया, जो एशिया में किसी भी देश पर सबसे ज्यादा है। वहीं, दुनिया में ब्राजील के साथ टॉप पर है। दोनों देशों में तनाव के पीछे टैरिफ नीति, रूस के साथ भारत की दोस्ती के साथ ही पाकिस्तान के साथ भारत के सैन्य संघर्ष पर ट्रंप की टिप्पणियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लगातार भारत के खिलाफ टिप्पणियां की। उन्होंने रूस और भारत की अर्थव्यवस्था को डेड इकनॉमी कहा। पीटर नवारो जैसे उनके करीबी ने तो और भी तीखे हमले किए। नवारो ने यूक्रेन युद्ध को मोदी का युद्ध कहा। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि भारत माफी मागेगा, लेकिन असल बात है कि भारत ने रूसी तेल खरीद रोकने से साफ इनकार कर दिया है। भारत ने खुलकर ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया और कहा अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में कोई भूमिका अदा नहीं की थी।
ट्रंप के सामने नहीं झुका भारत
भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान जहां ट्रंप के सामने दंडवत हो गया और पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर एक बुलावे पर वॉइट हाउस पहुंच गए। इसके उलट भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्रंप के आमंत्रण के बावजूद वॉशिंगटन न जाने का विकल्प चुना। इस बीच एक जर्मन अखबार ने दावा किया भारतीय प्रधानमंत्री से बात करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने चार बार फोन किया लेकिन पीएम मोदी इसे अस्वीकार कर दिया। भारत के इस रुख की अब इजरायल में जमकर तारीफ हो रही है और नेतन्याहू को पीएम मोदी से सीखने की सलाह दी जा रही है।
इजरायली अखबार ने की भारत की तारीफ
इजरायल के प्रमुख मीडिया आउटलेट यरुशलम पोस्ट में एक लेख छपा है, जिसका शीर्षक है- इजरायल मोदी से क्या सीख सकता है। इसमें कहा गया है कि ट्रंप के अभूतपूर्व मौखिक हमलों का सामना करते हुए मोदी ने माफी मांगने में जल्दबाजी नहीं, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करते हुए जोरदार जवाब देने का विकल्प चुना। लेख में कहा गया है कि इसने 'साफ संदेश' दिया, जो यह था कि 'भारत एक अधीनस्थ या निम्न राज्य के रूप में व्यवहार स्वीकार नहीं करेगा।'
भारत से इजरायल को सीखने की सलाह
लेख में इजरायल के उस फैसले की आलोचना की गई, जब इजरायली सेना ने खान यूनिस पर हमले में पत्रकारों की मौत को लेकर माफी मांगी। लेख में कहा गया कि किसी भी देश को कठिन और जटिल परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। भारत से सीख सकते हैं कि राष्ट्रीय सम्मान कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक दूरगामी रणनीतिक संपत्ति है। यदि इजरायल अपनी प्रतिष्ठा और सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, तो उसे दुनिया के सामने दृढ़ लचीलापन दिखाना होगा।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लगातार भारत के खिलाफ टिप्पणियां की। उन्होंने रूस और भारत की अर्थव्यवस्था को डेड इकनॉमी कहा। पीटर नवारो जैसे उनके करीबी ने तो और भी तीखे हमले किए। नवारो ने यूक्रेन युद्ध को मोदी का युद्ध कहा। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि भारत माफी मागेगा, लेकिन असल बात है कि भारत ने रूसी तेल खरीद रोकने से साफ इनकार कर दिया है। भारत ने खुलकर ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया और कहा अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में कोई भूमिका अदा नहीं की थी।
ट्रंप के सामने नहीं झुका भारत
भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान जहां ट्रंप के सामने दंडवत हो गया और पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर एक बुलावे पर वॉइट हाउस पहुंच गए। इसके उलट भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्रंप के आमंत्रण के बावजूद वॉशिंगटन न जाने का विकल्प चुना। इस बीच एक जर्मन अखबार ने दावा किया भारतीय प्रधानमंत्री से बात करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने चार बार फोन किया लेकिन पीएम मोदी इसे अस्वीकार कर दिया। भारत के इस रुख की अब इजरायल में जमकर तारीफ हो रही है और नेतन्याहू को पीएम मोदी से सीखने की सलाह दी जा रही है।
इजरायली अखबार ने की भारत की तारीफ
इजरायल के प्रमुख मीडिया आउटलेट यरुशलम पोस्ट में एक लेख छपा है, जिसका शीर्षक है- इजरायल मोदी से क्या सीख सकता है। इसमें कहा गया है कि ट्रंप के अभूतपूर्व मौखिक हमलों का सामना करते हुए मोदी ने माफी मांगने में जल्दबाजी नहीं, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करते हुए जोरदार जवाब देने का विकल्प चुना। लेख में कहा गया है कि इसने 'साफ संदेश' दिया, जो यह था कि 'भारत एक अधीनस्थ या निम्न राज्य के रूप में व्यवहार स्वीकार नहीं करेगा।'
भारत से इजरायल को सीखने की सलाह
लेख में इजरायल के उस फैसले की आलोचना की गई, जब इजरायली सेना ने खान यूनिस पर हमले में पत्रकारों की मौत को लेकर माफी मांगी। लेख में कहा गया कि किसी भी देश को कठिन और जटिल परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। भारत से सीख सकते हैं कि राष्ट्रीय सम्मान कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक दूरगामी रणनीतिक संपत्ति है। यदि इजरायल अपनी प्रतिष्ठा और सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, तो उसे दुनिया के सामने दृढ़ लचीलापन दिखाना होगा।
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