अश्वनी शर्मा, नई दिल्लीः दिल्ली के सरोजिनी नगर में 29 अक्टूबर 2005 की शाम आज भी लोगों के दिलों में सिहरन पैदा कर देती है। दिवाली से ठीक एक दिन पहले का दिन था, बाजार में रौनक, हंसी और खूब चहल-पहल थी। लेकिन कुछ ही पलों में एक बम धमाके ने सब कुछ राख में बदल दिया। चारों तरफ चीख-पुकार, खून से लथपथ शरीर और बिखरे हुए सपने थे। उस हादसे ने सैकड़ों जिंदगियां हमेशा के लिए खामोश कर दीं। बीस साल बीत जाने के बाद भी इन जख्मों पर अब तक मरहम नहीं लग पाया है। किसी ने अपना बच्चा खोया, किसी ने माता-पिता या भाई। कई लोगों ने दूसरों की जान बचाते हुए अपनी आंखें, हाथ और उम्मीदें गंवाई। एक परिवार को तो अपने परिजन का शव तक नहीं मिला।
आखिरी सांस तक उठाएंगे आवाज साउथ एशियन फोरम पीपल अगेंस्ट टेरर (रजिस्टर्ड) के अध्यक्ष अशोक रंधावा कहते हैं कि सरोजिनी नगर ब्लास्ट के घाव सिर्फ शरीर पर ही नहीं, आत्मा पर भी है। वे बताते है कि घटना में लोगों की दर्दनाक मौत हुई और घायल हुए। वो कहते हैं कि कई बार प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी कि पीड़ितों की मदद करें। इस साल भी लिखी है।
अपने भाई की लाश तक नहीं देख पाएब्लास्ट में अपने बड़े भाई को खो चुके सुरेंद्र बताते है कि घटना के दिन उनका भाई दुकान पर कपड़े बेच रहा था। करीब डेढ़ महीने बाद डीएनए रिपोर्ट से शव की पहचान हुई लेकिन टोकन नंबर की गलती से शव बदल गया। पता चला कि उनके भाई का शव बदल गया था।
ब्लास्ट में चली गई आंखें लेकिन कई जानें बचाईडीटीसी बस ड्राइवर कुलदीप सिंह ने हादसे में कई लोगों की जान बचाते हुए अपनी दोनों आंखे खो दी। वे कहते है कि करीब 70 लोगों को बचाने के दौरान मेरी आंखें चली गई। हादसे के डेढ़ महीने बाद बेटा हुआ लेकिन मैं उसकी शक्ल तक नहीं देख सकता हूं।
सुनवाई नहीं हुईसरकारें बदली, नेता आए और गए लेकिन पीड़ितों की सुनवाई नही हुई। ये कहना है बीस साल पहले अपने कलेजे के टुकड़े को ब्लास्ट में खो चुके विनोद पोद्दार का। विनोद के सात साल के बेटे करण की उस A ब्लास्ट में मौत हो गई थी। उनकी बेटी बुरी तरह झुलस गई थी।
बिना मां-बाप जीना कितना मुश्किल होता हैब्लास्ट में एक सात साल की बच्ची अपने माता-पिता और भाई के साथ खरीदारी करने आई थी। उसे क्या पता था कि यह परिवार के साथ आखिरी दिन होगा। हादसे में बेटे, बहू और पोते को खो चुके भगवानदास कहते है कि अब 20 साल हो गए, कब जागेगी सरकार।
आखिरी सांस तक उठाएंगे आवाज साउथ एशियन फोरम पीपल अगेंस्ट टेरर (रजिस्टर्ड) के अध्यक्ष अशोक रंधावा कहते हैं कि सरोजिनी नगर ब्लास्ट के घाव सिर्फ शरीर पर ही नहीं, आत्मा पर भी है। वे बताते है कि घटना में लोगों की दर्दनाक मौत हुई और घायल हुए। वो कहते हैं कि कई बार प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी कि पीड़ितों की मदद करें। इस साल भी लिखी है।
अपने भाई की लाश तक नहीं देख पाएब्लास्ट में अपने बड़े भाई को खो चुके सुरेंद्र बताते है कि घटना के दिन उनका भाई दुकान पर कपड़े बेच रहा था। करीब डेढ़ महीने बाद डीएनए रिपोर्ट से शव की पहचान हुई लेकिन टोकन नंबर की गलती से शव बदल गया। पता चला कि उनके भाई का शव बदल गया था।
ब्लास्ट में चली गई आंखें लेकिन कई जानें बचाईडीटीसी बस ड्राइवर कुलदीप सिंह ने हादसे में कई लोगों की जान बचाते हुए अपनी दोनों आंखे खो दी। वे कहते है कि करीब 70 लोगों को बचाने के दौरान मेरी आंखें चली गई। हादसे के डेढ़ महीने बाद बेटा हुआ लेकिन मैं उसकी शक्ल तक नहीं देख सकता हूं।
सुनवाई नहीं हुईसरकारें बदली, नेता आए और गए लेकिन पीड़ितों की सुनवाई नही हुई। ये कहना है बीस साल पहले अपने कलेजे के टुकड़े को ब्लास्ट में खो चुके विनोद पोद्दार का। विनोद के सात साल के बेटे करण की उस A ब्लास्ट में मौत हो गई थी। उनकी बेटी बुरी तरह झुलस गई थी।
बिना मां-बाप जीना कितना मुश्किल होता हैब्लास्ट में एक सात साल की बच्ची अपने माता-पिता और भाई के साथ खरीदारी करने आई थी। उसे क्या पता था कि यह परिवार के साथ आखिरी दिन होगा। हादसे में बेटे, बहू और पोते को खो चुके भगवानदास कहते है कि अब 20 साल हो गए, कब जागेगी सरकार।
You may also like

पीएम मोदी का विजन शानदार, 2047 तक भारत को पांचवां सबसे बड़ा शिपबिल्डर बनने का लक्ष्य व्यवहारिक : इटली के राजदूत

धमतरी : ठेकेदार अभिषेक त्रिपाठी के घर एसीबी व ईओडब्ल्यू की दबिश, पांच घंटे तक चली जांच

धमतरी : शहर में उत्साह के साथ मनाया गया गोपाष्टमी पर्व, गूंजा जय माधव, जय गोपाल का जयघोष

एसएमवीडीयू में यूजीसी-एमएमटीटीसी के तहत एनईपी 2020 पर 8 दिवसीय राष्ट्रीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न

सरदार पटेल सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि वे आज भी राष्ट्र चेतना के केंद्र हैं: धर्मपाल सिंह




