एक व्यक्ति सदैव प्रसन्न रहता था। एक दिन किसी ने पूछा, ‘आप को कभी अप्रसन्न नहीं देखा, आप कैसे हमेशा प्रसन्न रह पाते हैं?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैं अपनी प्रसन्नता से पहले तुम्हारे बारे में कुछ बताना चाहता हूं।’ ‘मेरे बारे में!’ दूसरे व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा। पहले व्यक्ति ने कहा, ‘हां, तुम्हारे बारे में, दरअसल तुम आज से एक सप्ताह बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।’ यह सुनकर प्रश्न कर्ता सन्न रह गया। उसके मन पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उसी दिन उसके स्वभाव में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ गया। वह छोटी-छोटी बातों से ऊपर उठ गया। सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करने लगा, उसके मन में उदारता ने जन्म ले लिया, उसके मन में मृत्यु की कल्पना थी।
तभी वही हमेशा प्रसन्नचित्त रहने वाला व्यक्ति उसके पास आया और उससे पूछा, ‘कहो, कैसा लग रहा है?’ इस पर दूसरे व्यक्ति ने शांत-भाव से उत्तर दिया, ‘इस पूरे सप्ताह मेरे मस्तिष्क तुम्हारी ही बात गूंज रही थी, जिसके चलते मुझे किसी पर क्रोध नहीं आया, कड़वा भी नहीं बोला, बल्कि सबके साथ मैं प्रेम पूर्वक रहा, सोचा, क्यों थोड़े से समय के लिए बुराई का टोकरा सिर पर उठाऊं।’ जो व्यक्ति हमेशा प्रसन्नचित्त रहता था, उसने कहा, ‘मैंने तुम्हारी मृत्यु की बात इसीलिए की थी कि तुम जान सको कि मृत्यु को याद रखने वाला क्रोध, घृणा व ईर्ष्या आदि के बारे में सोचता भी नहीं और यही मेरे प्रसन्न रहने का कारण है, अब मुझे लगता है कि तुमने भी प्रसन्न रहना सीख लिया है, वैसे एक बात मैं तुम्हें बताऊं कि मैं ज्योतिष शास्त्र को नहीं जानता, तुम्हारी आयु अभी शेष होगी, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था, परन्तु मेरी बातों का तुम पर जो प्रभाव पड़ा, उसके कारण तुमने अब जीवन में मेरी तरह प्रसन्नचित्त रहने की कला सीख ली है।’
व्यक्ति जीवन में जो भी अच्छे एवं पुण्य कार्य करता है अथवा जो निंदित, त्याज्य, निषिद्ध कर्मों को करता है, वे ही मृत्यु के बाद पाप-पुण्य बनकर उसके साथ जाते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार मरने के बाद कोई बंधु-बांधव साथ नहीं देता, व्यक्ति अगर पुण्य का कार्य करता है तो उसकी सद्गति होती है और यदि निंदित कार्य करता है, तो घोर यम-यातना भोगकर अधम योनियों को प्राप्त करता है।
तभी वही हमेशा प्रसन्नचित्त रहने वाला व्यक्ति उसके पास आया और उससे पूछा, ‘कहो, कैसा लग रहा है?’ इस पर दूसरे व्यक्ति ने शांत-भाव से उत्तर दिया, ‘इस पूरे सप्ताह मेरे मस्तिष्क तुम्हारी ही बात गूंज रही थी, जिसके चलते मुझे किसी पर क्रोध नहीं आया, कड़वा भी नहीं बोला, बल्कि सबके साथ मैं प्रेम पूर्वक रहा, सोचा, क्यों थोड़े से समय के लिए बुराई का टोकरा सिर पर उठाऊं।’ जो व्यक्ति हमेशा प्रसन्नचित्त रहता था, उसने कहा, ‘मैंने तुम्हारी मृत्यु की बात इसीलिए की थी कि तुम जान सको कि मृत्यु को याद रखने वाला क्रोध, घृणा व ईर्ष्या आदि के बारे में सोचता भी नहीं और यही मेरे प्रसन्न रहने का कारण है, अब मुझे लगता है कि तुमने भी प्रसन्न रहना सीख लिया है, वैसे एक बात मैं तुम्हें बताऊं कि मैं ज्योतिष शास्त्र को नहीं जानता, तुम्हारी आयु अभी शेष होगी, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था, परन्तु मेरी बातों का तुम पर जो प्रभाव पड़ा, उसके कारण तुमने अब जीवन में मेरी तरह प्रसन्नचित्त रहने की कला सीख ली है।’
व्यक्ति जीवन में जो भी अच्छे एवं पुण्य कार्य करता है अथवा जो निंदित, त्याज्य, निषिद्ध कर्मों को करता है, वे ही मृत्यु के बाद पाप-पुण्य बनकर उसके साथ जाते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार मरने के बाद कोई बंधु-बांधव साथ नहीं देता, व्यक्ति अगर पुण्य का कार्य करता है तो उसकी सद्गति होती है और यदि निंदित कार्य करता है, तो घोर यम-यातना भोगकर अधम योनियों को प्राप्त करता है।
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