लखनऊ: बस में एक बार में सिर्फ एक आदमी बमुश्किल घुस सकता है। अगर इमरजेंसी में भागना पड़े तो आगे की दो-तीन सीटों पर बैठे लोगों को छोड़कर शायद ही कोई समय रहते निकल पाए। बस इतनी कंजस्टेड है कि एसी-पंखें बंद हों तों हवा की कमी से दम घुटने लगे। यह हाल मध्य प्रदेश में दर्ज और लखनऊ के ट्रांसपोर्ट नगर से संचालित एमपी 70 जेडबी 8095 एसी बस का है।
बस में मानक के अनुसार 30 सीटें होनी चाहिए, जिन्हें बढ़ाकर 36 कर दिया गया है। बस में एक भी अग्निशमन यंत्र नहीं है। पीछे का इमरजेंसी गेट सीट से बंद है। एक भी इमरजेंसी गेट नहीं है। यह बस पिछले छह साल से ऑल इंडिया परमिट लेकर सड़कों पर दौड़ रही है। ऐसी खामियां सिर्फ इस एक बस में नहीं बल्कि दर्जन भर निजी एसी बसों में मिली है।
इन बसों में भी खामियों की भरमार
प्राइवेट एसी बसो में ज्यादातर में ओवर हैग यानी बॉडी में छेड़छाड़ कर बढ़ाई गई है। इससे दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। इनमें सीटें मानक से ज्यादा, इमरजेंसी गेट तक नहीं होता। बस की छत पर नियमविरुद्ध लगेज कैरियर लगा होता है। वील बेस भी असमान्य मिला है। बस की लंबाई भी असमान्य रूप से बढ़ाई जाती है और इमरजेंसी गेट भी गायब रहता है।
क्या हैं नियम
नई बसों की फिटनेस हर दो साल पर होती है। जिन बसों मे खामियां मिली है, वे पांच साल से ज्यादा पुरानी है। ऐसे में इन बसो की फिटनेस कम से कम दो बार हो चुकी है। इससे साफ है कि इन बसों की फिटनेस में खेल हुआ है।
कैसे चल रहा यह खेल?
लखनऊ सहित कई जिलों में वाहनों की फिटनेस को प्राइवेट हाथों में सौप दिया गया है। अब पूरे यूपी में यह व्यवस्था लागू की जा रही है। इसके अलावा एनीवेयर फिटनेस व्यवस्था भी लागू की गई है, जिसमें गाड़ी की फिटनेस कहीं भी करवाई जा सकती है। जानकारों के मुताबिक इस व्यवस्था का दुरुपयोग शुरू हो रहा है।
प्राइवेट सेंटर पर फिटनेस का खेल राजस्थान समेत कई राज्यों में सामने आ चुका है। इसकी वजह से वहां पर इन सेंटरों को बंद कर सरकार ने फिर यह व्यवस्था अपने हाथों में ले ली है। यूपी के झांसी में भी एक-एक फिटनेस के बदले हजारों रुपये वसूलने का मामला सामने आया था। एफआईआर के बाद सेंटर को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया गया था।
एमवीआई से जांच करवाने में देरी क्यों?
यूपी में परिवहन विभाग में संभागीय निरीक्षक के पद पर तकनीकी अफसर तैनात होते हैं। इनको नया पदनाम मोटर वीइकल इंस्पेक्टर (एमवीआई) देकर रोड पर भी जांच के आदेश दिए गए हैं। मंशा थी कि ये अफसर जब रोड पर उतरेंगे तो बसों में छेड़छाड़ और तकनीकी खामियों को आसानी से पकड़ा जा सकेगा। शासन से आदेश मिलने के बाद विभागीय स्तर से इनकी आईडी जारी नहीं का जा रही है। इसके पीछे अफसरों की खेमेबाजी सामने आ रही है और इस वजह से यात्रियों की जान दांव पर लगी है।
कई बड़े बस हादसों में जा चुकी हैं जानें
अक्टूबर में राजस्थान के जैसलमेर और आंध प्रदेश में मात्र दो बस हादसों में 46 मौतें हुई थीं। इनमें आग की घटनाएं हुई थी। लखनऊ में भी 15 मई को हुई दुर्घटना में पांच लोग जिंदा जल गए थे। लखनऊ में हादसे का शिकार हुई बस में भी फिटनेस सिस्टम की खामियां सामने आई थीं। फिटनेस के दौरान गंभीर लारवाही बरतने पर अफसर राघव को निलंबित कर दिया गया था।
बस में मानक के अनुसार 30 सीटें होनी चाहिए, जिन्हें बढ़ाकर 36 कर दिया गया है। बस में एक भी अग्निशमन यंत्र नहीं है। पीछे का इमरजेंसी गेट सीट से बंद है। एक भी इमरजेंसी गेट नहीं है। यह बस पिछले छह साल से ऑल इंडिया परमिट लेकर सड़कों पर दौड़ रही है। ऐसी खामियां सिर्फ इस एक बस में नहीं बल्कि दर्जन भर निजी एसी बसों में मिली है।
इन बसों में भी खामियों की भरमार
प्राइवेट एसी बसो में ज्यादातर में ओवर हैग यानी बॉडी में छेड़छाड़ कर बढ़ाई गई है। इससे दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। इनमें सीटें मानक से ज्यादा, इमरजेंसी गेट तक नहीं होता। बस की छत पर नियमविरुद्ध लगेज कैरियर लगा होता है। वील बेस भी असमान्य मिला है। बस की लंबाई भी असमान्य रूप से बढ़ाई जाती है और इमरजेंसी गेट भी गायब रहता है।
क्या हैं नियम
नई बसों की फिटनेस हर दो साल पर होती है। जिन बसों मे खामियां मिली है, वे पांच साल से ज्यादा पुरानी है। ऐसे में इन बसो की फिटनेस कम से कम दो बार हो चुकी है। इससे साफ है कि इन बसों की फिटनेस में खेल हुआ है।
कैसे चल रहा यह खेल?
लखनऊ सहित कई जिलों में वाहनों की फिटनेस को प्राइवेट हाथों में सौप दिया गया है। अब पूरे यूपी में यह व्यवस्था लागू की जा रही है। इसके अलावा एनीवेयर फिटनेस व्यवस्था भी लागू की गई है, जिसमें गाड़ी की फिटनेस कहीं भी करवाई जा सकती है। जानकारों के मुताबिक इस व्यवस्था का दुरुपयोग शुरू हो रहा है।
प्राइवेट सेंटर पर फिटनेस का खेल राजस्थान समेत कई राज्यों में सामने आ चुका है। इसकी वजह से वहां पर इन सेंटरों को बंद कर सरकार ने फिर यह व्यवस्था अपने हाथों में ले ली है। यूपी के झांसी में भी एक-एक फिटनेस के बदले हजारों रुपये वसूलने का मामला सामने आया था। एफआईआर के बाद सेंटर को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया गया था।
एमवीआई से जांच करवाने में देरी क्यों?
यूपी में परिवहन विभाग में संभागीय निरीक्षक के पद पर तकनीकी अफसर तैनात होते हैं। इनको नया पदनाम मोटर वीइकल इंस्पेक्टर (एमवीआई) देकर रोड पर भी जांच के आदेश दिए गए हैं। मंशा थी कि ये अफसर जब रोड पर उतरेंगे तो बसों में छेड़छाड़ और तकनीकी खामियों को आसानी से पकड़ा जा सकेगा। शासन से आदेश मिलने के बाद विभागीय स्तर से इनकी आईडी जारी नहीं का जा रही है। इसके पीछे अफसरों की खेमेबाजी सामने आ रही है और इस वजह से यात्रियों की जान दांव पर लगी है।
कई बड़े बस हादसों में जा चुकी हैं जानें
अक्टूबर में राजस्थान के जैसलमेर और आंध प्रदेश में मात्र दो बस हादसों में 46 मौतें हुई थीं। इनमें आग की घटनाएं हुई थी। लखनऊ में भी 15 मई को हुई दुर्घटना में पांच लोग जिंदा जल गए थे। लखनऊ में हादसे का शिकार हुई बस में भी फिटनेस सिस्टम की खामियां सामने आई थीं। फिटनेस के दौरान गंभीर लारवाही बरतने पर अफसर राघव को निलंबित कर दिया गया था।
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