भोपाल: मोहन भागवत ने हिंदू धर्म की तुलना आरएसएस से की थी। इसे लेकर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह भड़क गए हैं। उन्होंने कहा कि भागवत ने संघ के पंजीकृत नहीं होने की तुलना हिंदू धर्म के पंजीकृत न होने से करके सनातन धर्म को मानने वाले करोड़ों लोगों की आस्था का अपमान किया है।
हिंदू धर्म की जड़ें हजारों वर्षों पुरानीदिग्विजय सिंह ने कहा कि हिंदू धर्म की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं, जबकि आरएसएस एक शताब्दी पुराना संगठन मात्र है। उन्होंने कहा कि संघ को हिंदू धर्म से जोड़ना न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है बल्कि यह करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। संघ यदि स्वयं को धर्म का प्रतिनिधि बताता है तो यह उसके अहंकार और अज्ञान का प्रमाण है।
संवैधानिक व्यवस्थाओं ने दूरी बनाए रखीउन्होंने संघ के पंजीकरण और आर्थिक पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा कि आरएसएस की स्थापना से लेकर आज तक उसने देश के कानूनों और संवैधानिक व्यवस्थाओं से दूरी बनाए रखी है। उन्होंने सवाल उठाया कि देशभर के लाखों स्वयंसेवी संगठन, सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत हैं और नियमित रूप से अपनी आय-व्यय का ब्यौरा सरकार को देते हैं। फिर संघ इस नियम से खुद को ऊपर क्यों समझता है? करोड़ों रुपए के बजट और 250 करोड़ रुपए की लागत से दिल्ली में बने कार्यालय का हिसाब संघ जनता के सामने क्यों नहीं रखता?
यह ऐतिहासिक असत्य है... दिग्विजय सिंह ने कहा कि मोहन भागवत द्वारा यह कहना कि संघ अंग्रेजों से लड़ रहा था, यह पूर्णतः ऐतिहासिक असत्य है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कहीं भी संघ की कोई भूमिका नहीं दिखती। 1925 से 1947 तक जब देश महात्मा गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के नेतृत्व में अंग्रेजों से संघर्ष कर रहा था, तब संघ के लोग आंदोलन से दूर रहे। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अशफाक उल्ला खां जैसे क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूल गए, लेकिन संघ का कोई कार्यकर्ता आजादी की लड़ाई में जेल नहीं गया।
उन्होंने कहा कि एक ओर संघ स्वयं को राष्ट्रभक्त संगठन बताता है, दूसरी ओर उससे जुड़े कुछ लोग देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। संघ के वरिष्ठ नेता स्वयं स्वीकार करते हैं कि हजारों स्वयंसेवक बीफ खाते हैं यह उनके तथाकथित ‘संस्कृति-रक्षक’ स्वरूप की वास्तविकता को उजागर करता है।
दिग्विजय सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा कि हिंदू धर्म किसी संगठन या संस्था का मोहताज नहीं है। उसके शाश्वत सिद्धांत वेद-पुराणों और उपनिषदों में निहित हैं, न कि किसी शाखा या प्रचारक में। डॉ मोहन भागवत को हिंदू धर्म और संघ की तुलना करने वाले अपने शब्द वापस लेकर, सनातन धर्म को मानने वाले करोड़ों हिंदुओं से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
हिंदू धर्म की जड़ें हजारों वर्षों पुरानीदिग्विजय सिंह ने कहा कि हिंदू धर्म की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं, जबकि आरएसएस एक शताब्दी पुराना संगठन मात्र है। उन्होंने कहा कि संघ को हिंदू धर्म से जोड़ना न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है बल्कि यह करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। संघ यदि स्वयं को धर्म का प्रतिनिधि बताता है तो यह उसके अहंकार और अज्ञान का प्रमाण है।
संवैधानिक व्यवस्थाओं ने दूरी बनाए रखीउन्होंने संघ के पंजीकरण और आर्थिक पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा कि आरएसएस की स्थापना से लेकर आज तक उसने देश के कानूनों और संवैधानिक व्यवस्थाओं से दूरी बनाए रखी है। उन्होंने सवाल उठाया कि देशभर के लाखों स्वयंसेवी संगठन, सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत हैं और नियमित रूप से अपनी आय-व्यय का ब्यौरा सरकार को देते हैं। फिर संघ इस नियम से खुद को ऊपर क्यों समझता है? करोड़ों रुपए के बजट और 250 करोड़ रुपए की लागत से दिल्ली में बने कार्यालय का हिसाब संघ जनता के सामने क्यों नहीं रखता?
यह ऐतिहासिक असत्य है... दिग्विजय सिंह ने कहा कि मोहन भागवत द्वारा यह कहना कि संघ अंग्रेजों से लड़ रहा था, यह पूर्णतः ऐतिहासिक असत्य है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कहीं भी संघ की कोई भूमिका नहीं दिखती। 1925 से 1947 तक जब देश महात्मा गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के नेतृत्व में अंग्रेजों से संघर्ष कर रहा था, तब संघ के लोग आंदोलन से दूर रहे। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अशफाक उल्ला खां जैसे क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूल गए, लेकिन संघ का कोई कार्यकर्ता आजादी की लड़ाई में जेल नहीं गया।
उन्होंने कहा कि एक ओर संघ स्वयं को राष्ट्रभक्त संगठन बताता है, दूसरी ओर उससे जुड़े कुछ लोग देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। संघ के वरिष्ठ नेता स्वयं स्वीकार करते हैं कि हजारों स्वयंसेवक बीफ खाते हैं यह उनके तथाकथित ‘संस्कृति-रक्षक’ स्वरूप की वास्तविकता को उजागर करता है।
दिग्विजय सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा कि हिंदू धर्म किसी संगठन या संस्था का मोहताज नहीं है। उसके शाश्वत सिद्धांत वेद-पुराणों और उपनिषदों में निहित हैं, न कि किसी शाखा या प्रचारक में। डॉ मोहन भागवत को हिंदू धर्म और संघ की तुलना करने वाले अपने शब्द वापस लेकर, सनातन धर्म को मानने वाले करोड़ों हिंदुओं से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
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