अभय सिंह राठौड़, लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में संभावित बढ़ोतरी को लेकर बड़ा कंफ्यूजन पैदा हो गया है। जहां पावर कॉरपोरेशन ने बिजली दरों में 30% तक की बढ़ोतरी का प्रस्ताव नियामक आयोग (UPERC) को भेजा है, वहीं राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इसका कड़ा विरोध करते हुए 40-45% तक कटौती का प्रस्ताव आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है। जानकारों की माने तो नियामक आयोग जून में सार्वजनिक सुनवाई शुरू कर सकता है, जिसमें बिजली कंपनियों के दावों और उपभोक्ता परिषद की आपत्तियों पर विचार किया जाएगा। तब जाकर तय होगा कि प्रदेश में बिजली महंगी होगी या सस्ती। आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं। पावर कॉरपोरेशन का प्रस्तावउत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए बिजली दरों में लगभग 30% की बढ़ोतरी का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग (UPERC) के समक्ष प्रस्तुत किया है। कॉरपोरेशन का दावा है कि पिछले 5 वर्षों से दरों में कोई वृद्धि नहीं हुई है, जिससे 19,600 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा हुआ है। उपभोक्ता परिषद का विरोधराज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए बिजली दरों में 40-45% की कटौती का सुझाव दिया है। परिषद का तर्क है कि पावर कॉरपोरेशन ने उपभोक्ताओं से पूर्व में वसूली गई राशि को घाटे में दर्शाया है, जो अनुचित है। इसके अलावा, परिषद ने स्मार्ट प्रीपेड मीटर परियोजना में अनुमोदित राशि से अधिक खर्च और फिक्स्ड कॉस्ट के उच्च प्रतिशत को भी घाटे का कारण बताया है। प्रमुख विवाद बिंदु उपभोक्ता परिषद ने क्या कहा?राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कॉरपोरेशन के वित्तीय आंकड़ों को चुनौती देते हुए कहा है कि कंपनियां जानबूझकर घाटा बढ़ाकर दिखा रही हैं। उन्होंने कहा कि 2017-18 तक बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का 13,337 करोड़ रुपये बकाया था। यह रकम 12% ब्याज दर के साथ 2023-24 में 33,122 करोड़ रुपये और अब 35,000 करोड़ रुपये के पार हो गई है। बावजूद इसके कंपनियां इस बकाए को घाटे में दिखा रही हैं, जबकि वास्तव में यह राशि ब्याज सहित उपभोक्ताओं से वसूली जाती है। नोएडा पावर कंपनी को लेकर उठाए सवालपरिषद ने पूछा कि जब नोएडा पावर कंपनी पर बकाया के कारण तीन सालों से 10% की कटौती हो रही है, तो यह व्यवस्था बाकी कंपनियों पर क्यों नहीं लागू की गई? स्मार्ट प्रीपेड मीटर और टेंडरों पर सवालकेंद्र सरकार ने यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के लिए 18,885 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी, लेकिन पावर कॉरपोरेशन ने इसके लिए 27,342 करोड़ रुपये के टेंडर जारी किए। परिषद ने सवाल उठाया कि 9,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च की जवाबदेही उपभोक्ताओं पर क्यों डाली जा रही है? सौभाग्य योजना के लाभार्थियों पर भी उंगलीपरिषद ने आरोप लगाया कि सौभाग्य योजना के तहत 54 लाख उपभोक्ताओं को मुफ्त कनेक्शन दिए गए, जिनमें से अधिकांश ने कभी बिजली बिल नहीं चुकाया। इन उपभोक्ताओं को अब अत्यधिक बिल भेजे जा रहे हैं, जिससे अन्य उपभोक्ताओं पर भी असर पड़ रहा है। पावर कॉरपोरेशन का बचावपावर कॉरपोरेशन के मुख्य अभियंता (वाणिज्य) डीसी वर्मा और मुख्य महाप्रबंधक (वित्त) सचिन गोयल ने अपने आंकड़ों का बचाव करते हुए कहा कि सभी वित्तीय विवरण ERP प्रणाली के माध्यम से तैयार होते हैं और इनमें फर्जीवाड़े की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने बताया कि बैलेंस शीट का CAG ऑडिट भी होता है, जिससे इसकी पारदर्शिता सिद्ध होती है। आगे की प्रक्रियाविद्युत नियामक आयोग जून 2025 में इस प्रस्ताव पर सुनवाई शुरू करेगा। दोनों पक्षों की दलीलों और प्रस्तुत आंकड़ों के आधार पर आयोग निर्णय लेगा कि बिजली दरों में वृद्धि की जाए, कटौती की जाए या वर्तमान दरें बरकरार रखी जाएं। फिलहाल यूपी में बिजली दरों को लेकर स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। जहां पावर कॉरपोरेशन वित्तीय घाटे का हवाला देकर दरों में वृद्धि की मांग कर रहा है, वहीं उपभोक्ता परिषद इस वृद्धि को अनुचित बताते हुए कटौती की मांग कर रही है। अंतिम निर्णय विद्युत नियामक आयोग द्वारा लिया जाएगा, जिसकी सुनवाई जून में प्रस्तावित है।
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