नई दिल्ली: दुबई, जापान, अमेरिका, स्विट्जरलैंड... ये वो देश हैं जिनकी कंपनियां भारतीय बैंकों में पैसा लगाने के लिए लाइन में लगी हैं। इस समय भारतीय बैंक विदेशी पैसे के लिए चुंबक बन गए हैं। यानी भारतीय बैंक अब दुनियाभर के निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं। हाल के वर्षों में एफडीआई में थोड़ी नरमी के बावजूद भारतीय वित्तीय संस्थानों में विदेशी पूंजी का प्रवाह तेजी से बढ़ा है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार इस साल अब तक लगभग 15 अरब डॉलर (करीब 1.32 लाख करोड़ रुपये) के सौदे हुए हैं। यह भारत की वित्तीय क्षमता में बढ़ते विश्वास का संकेत है।
दुबई के एमिरेट्स एनबीडी, जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन, अमेरिका के ब्लैकस्टोन और स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख इंश्योरेंस जैसी बड़ी वैश्विक कंपनियां भारतीय बैंकों, बीमा कंपनियों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) में भारी निवेश कर रही हैं। हाल ही में ब्लैकस्टोन ने फेडरल बैंक में 9.9% हिस्सेदारी के लिए 705 मिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिससे वह बैंक का सबसे बड़ा शेयरधारक बन गया है।
विदेशी कंपनियों को क्यों हो रही आकर्षितवैश्विक निवेशक सिर्फ थोड़े समय के फायदे के लिए भारत की ओर नहीं खिंचे चले आ रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था लगातार सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी हुई है। इसका मुख्य कारण बढ़ता उपभोग, तेजी से शहरीकरण और एक फलता-फूलता डिजिटल इकोसिस्टम है। औपचारिक वित्तीय प्रणाली भी इस वृद्धि को दर्शा रही है जहां खुदरा, आवास और छोटे व्यवसायों जैसे क्षेत्रों में ऋण की मांग तेजी से बढ़ रही है।
कंपनियों को दिख रही उम्मीद!भारत में अभी भी बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बहुत कम है। आबादी के बड़े हिस्से और छोटे उद्यम अभी भी अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर हैं। विदेशी निवेशकों के लिए यह कम पैठ एक बहुत बड़ा अवसर है। पूरे देश में अपनी वित्तीय उपस्थिति को शुरू से बनाने में दशकों लग जाएंगे। स्थापित बैंकों और एनबीएफसी में हिस्सेदारी खरीदकर, निवेशक तुरंत ग्राहक आधार, नियामक लाइसेंस और वितरण नेटवर्क तक पहुंच प्राप्त कर लेते हैं।
भारत के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर भारत का विश्व स्तरीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (जिसमें यूपीआई और आधार जैसी सेवाएं शामिल हैं) ने भारतीयों के बचत करने, उधार लेने और लेनदेन करने के तरीके को बदल दिया है। वैश्विक संस्थानों के लिए यह डिजिटल तैयारी एक और आकर्षण है, क्योंकि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में भारी वृद्धि की उम्मीद है।
भारतीय बैंकों को पैसे की कितनी जरूरत?भारतीय बैंकों और एनबीएफसी के लिए विदेशी पैसे का यह प्रवाह ऐसे समय में आवश्यक पूंजी लाता है जब विस्तार की मांग बहुत अधिक है। जैसे-जैसे भारत लगातार गति से बढ़ रहा है, वित्तीय पूंजी की मांग तेजी से बढ़ेगी। लोन देने और इंश्योरेंस के लिए काफी पैसे की जरूरत होगी। भारत के अधिक छोटे और मध्यम आकार के बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाएं विदेशी पूंजी के लक्ष्य बन सकते हैं।
दुनिया मान रही भारतीय बैंकों का लोहाआज भारतीय बैंकों को काफी लचीला माना जाता है। इस महीने की शुरुआत में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने कहा था कि भारतीय बैंक वैश्विक अनिश्चितता, टैरिफ, ब्याज दरों में कटौती और कमजोर होते रुपये से निपटने के लिए अच्छी स्थिति में हैं। हालांकि एसएंडपी को उम्मीद है कि असुरक्षित खुदरा और छोटे व्यवसाय ऋणों के साथ-साथ माइक्रोफाइनेंस में तनाव के कारण अगले दो वर्षों में बैंकों की क्रेडिट लागत 80-90 आधार अंक बढ़ सकती है।
दुबई के एमिरेट्स एनबीडी, जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन, अमेरिका के ब्लैकस्टोन और स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख इंश्योरेंस जैसी बड़ी वैश्विक कंपनियां भारतीय बैंकों, बीमा कंपनियों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) में भारी निवेश कर रही हैं। हाल ही में ब्लैकस्टोन ने फेडरल बैंक में 9.9% हिस्सेदारी के लिए 705 मिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिससे वह बैंक का सबसे बड़ा शेयरधारक बन गया है।
विदेशी कंपनियों को क्यों हो रही आकर्षितवैश्विक निवेशक सिर्फ थोड़े समय के फायदे के लिए भारत की ओर नहीं खिंचे चले आ रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था लगातार सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी हुई है। इसका मुख्य कारण बढ़ता उपभोग, तेजी से शहरीकरण और एक फलता-फूलता डिजिटल इकोसिस्टम है। औपचारिक वित्तीय प्रणाली भी इस वृद्धि को दर्शा रही है जहां खुदरा, आवास और छोटे व्यवसायों जैसे क्षेत्रों में ऋण की मांग तेजी से बढ़ रही है।
कंपनियों को दिख रही उम्मीद!भारत में अभी भी बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बहुत कम है। आबादी के बड़े हिस्से और छोटे उद्यम अभी भी अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर हैं। विदेशी निवेशकों के लिए यह कम पैठ एक बहुत बड़ा अवसर है। पूरे देश में अपनी वित्तीय उपस्थिति को शुरू से बनाने में दशकों लग जाएंगे। स्थापित बैंकों और एनबीएफसी में हिस्सेदारी खरीदकर, निवेशक तुरंत ग्राहक आधार, नियामक लाइसेंस और वितरण नेटवर्क तक पहुंच प्राप्त कर लेते हैं।
भारत के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर भारत का विश्व स्तरीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (जिसमें यूपीआई और आधार जैसी सेवाएं शामिल हैं) ने भारतीयों के बचत करने, उधार लेने और लेनदेन करने के तरीके को बदल दिया है। वैश्विक संस्थानों के लिए यह डिजिटल तैयारी एक और आकर्षण है, क्योंकि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में भारी वृद्धि की उम्मीद है।
भारतीय बैंकों को पैसे की कितनी जरूरत?भारतीय बैंकों और एनबीएफसी के लिए विदेशी पैसे का यह प्रवाह ऐसे समय में आवश्यक पूंजी लाता है जब विस्तार की मांग बहुत अधिक है। जैसे-जैसे भारत लगातार गति से बढ़ रहा है, वित्तीय पूंजी की मांग तेजी से बढ़ेगी। लोन देने और इंश्योरेंस के लिए काफी पैसे की जरूरत होगी। भारत के अधिक छोटे और मध्यम आकार के बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाएं विदेशी पूंजी के लक्ष्य बन सकते हैं।
दुनिया मान रही भारतीय बैंकों का लोहाआज भारतीय बैंकों को काफी लचीला माना जाता है। इस महीने की शुरुआत में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने कहा था कि भारतीय बैंक वैश्विक अनिश्चितता, टैरिफ, ब्याज दरों में कटौती और कमजोर होते रुपये से निपटने के लिए अच्छी स्थिति में हैं। हालांकि एसएंडपी को उम्मीद है कि असुरक्षित खुदरा और छोटे व्यवसाय ऋणों के साथ-साथ माइक्रोफाइनेंस में तनाव के कारण अगले दो वर्षों में बैंकों की क्रेडिट लागत 80-90 आधार अंक बढ़ सकती है।
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