ज्ञान प्रकाश चतुर्वेदी, सोनभद्र: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिकंदरपुर तहसील के गौरा गांव में अहीर (यादव) कुल में जन्मे वीर लोरिक भोजपुरी लोक महाकाव्य 'लोरिकायन' के केंद्रीय नायक हैं, जिन्हें अहीर कृषक वर्ग की रामायण कहा जाता है। उनके पिता कुआ मनियार और माता खुल्हनी थे, जबकि बड़ा भाई समरू एक प्रसिद्ध योद्धा था, जो कोल राजा देवसिया के हाथों मारा गया।
लोरिक की वीरता की पहली झलक तब दिखी जब उन्होंने सोनभद्र के अगोरी राज्य की राजकुमारी मंजरी से प्रेम किया। मंजरी के पिता मेहर पर राजा मोलागत की बुरी नजर थी, जो क्रूर और ईर्ष्यालु था। लोरिक ने मंजरी को बचाने का संकल्प लिया, जो उनकी प्रेम और युद्ध की गाथा का आधार बना। यह महाकाव्य वीर रस से परिपूर्ण है, जिसमें लोरिक की 400 किलो वजनी तलवार और अपार शक्ति का गुणगान है।
युद्ध और प्रेम की परीक्षा
लोरिकायन में वर्णित मुख्य संघर्ष तब भड़का जब राजा मोलागत ने मंजरी से विवाह का दावा किया। लोरिक अपनी बारात और सेना लेकर सोन नदी पार कर अगोरी किले पहुंचे, जहां उन्होंने राजा को चुनौती दी। एक प्रसिद्ध प्रसंग में, मंजरी ने अपनी प्रेम की परीक्षा के लिए लोरिक से एक विशाल चट्टान को दो भागों में काटने को कहा, बिना उसे गिराए।
लोरिक ने अपनी तलवार से चमत्कारिक ढंग से ऐसा कर दिखाया, जो आज भी सोनभद्र के मारकुंडी घाटी में 'वीर लोरिक पत्थर' के रूप में खड़ा है। इस युद्ध में लोरिक घायल हुए, लेकिन विजयी होकर मंजरी से विवाह किया। कथा में चंदा नामक एक अन्य राजकुमारी का प्रकरण भी है, जहां लोरिक ने बठुआ नामक डाकू से उसकी रक्षा की, जो पारिवारिक विरोध और सामाजिक तिरस्कार की थीम को उजागर करता है।
विरासत और सांस्कृतिक महत्व
लोरिकायन 14वीं शताब्दी के पूर्व से जुड़ी इस गाथा को लोकगीत, नृत्य-नाटक के रूप में गाया जाता है, जो अहीर समाज की वीरता, प्रेम और न्याय की प्रतीक है। लोरिक को ईश्वरीय योद्धा माना जाता है, जिनकी तलवार में देवी का वास था।
वृद्धावस्था में वे अग्नि को अर्पण हो गए, लेकिन उनकी स्मृति में 'लोरीकी' गाथाएं आज भी बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीवंत हैं। यह महाकाव्य राजपूत अत्याचार के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक है, जो आम जन के हितैषी लोरिक को अमर बनाता है। पर्यटक आज भी लोरिक पत्थर पर प्रेम की मनोकामना करते हैं, जो साबित करता है कि यह कथा सदियों बाद भी प्रासंगिक बनी हुई है।
लोरिक की वीरता की पहली झलक तब दिखी जब उन्होंने सोनभद्र के अगोरी राज्य की राजकुमारी मंजरी से प्रेम किया। मंजरी के पिता मेहर पर राजा मोलागत की बुरी नजर थी, जो क्रूर और ईर्ष्यालु था। लोरिक ने मंजरी को बचाने का संकल्प लिया, जो उनकी प्रेम और युद्ध की गाथा का आधार बना। यह महाकाव्य वीर रस से परिपूर्ण है, जिसमें लोरिक की 400 किलो वजनी तलवार और अपार शक्ति का गुणगान है।
युद्ध और प्रेम की परीक्षा
लोरिकायन में वर्णित मुख्य संघर्ष तब भड़का जब राजा मोलागत ने मंजरी से विवाह का दावा किया। लोरिक अपनी बारात और सेना लेकर सोन नदी पार कर अगोरी किले पहुंचे, जहां उन्होंने राजा को चुनौती दी। एक प्रसिद्ध प्रसंग में, मंजरी ने अपनी प्रेम की परीक्षा के लिए लोरिक से एक विशाल चट्टान को दो भागों में काटने को कहा, बिना उसे गिराए।
लोरिक ने अपनी तलवार से चमत्कारिक ढंग से ऐसा कर दिखाया, जो आज भी सोनभद्र के मारकुंडी घाटी में 'वीर लोरिक पत्थर' के रूप में खड़ा है। इस युद्ध में लोरिक घायल हुए, लेकिन विजयी होकर मंजरी से विवाह किया। कथा में चंदा नामक एक अन्य राजकुमारी का प्रकरण भी है, जहां लोरिक ने बठुआ नामक डाकू से उसकी रक्षा की, जो पारिवारिक विरोध और सामाजिक तिरस्कार की थीम को उजागर करता है।
विरासत और सांस्कृतिक महत्व
लोरिकायन 14वीं शताब्दी के पूर्व से जुड़ी इस गाथा को लोकगीत, नृत्य-नाटक के रूप में गाया जाता है, जो अहीर समाज की वीरता, प्रेम और न्याय की प्रतीक है। लोरिक को ईश्वरीय योद्धा माना जाता है, जिनकी तलवार में देवी का वास था।
वृद्धावस्था में वे अग्नि को अर्पण हो गए, लेकिन उनकी स्मृति में 'लोरीकी' गाथाएं आज भी बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीवंत हैं। यह महाकाव्य राजपूत अत्याचार के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक है, जो आम जन के हितैषी लोरिक को अमर बनाता है। पर्यटक आज भी लोरिक पत्थर पर प्रेम की मनोकामना करते हैं, जो साबित करता है कि यह कथा सदियों बाद भी प्रासंगिक बनी हुई है।
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