नई दिल्ली: सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ देश में बनी जांच किट बहुत जल्द आने वाली है। एम्स के गायनेकोलॉजी डिपार्टमेंट की पूर्व एचओडी और नैशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज की उपाध्यक्ष डॉ. नीरजा भाटला ने कहा कि भारत में विकसित एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) जांच की स्वदेशी किट ट्रायल में 97.7 से 98.9 फीसदी तक प्रभावी पाई गई है। यह किट न सिर्फ सटीक जांच करती है, बल्कि किफायती भी है। उन्होंने कहा कि बुधवार को यह किट औपचारिक रूप से जारी की जाएगी और उम्मीद जताई कि इसे राष्ट्रीय स्क्रीनिंग कार्यक्रम में भी शामिल किया जा सकता है।सोमवार को उन्होंने कहा कि भारत में महिलाओं के बीच एक बड़ी चिंता का विषय रहे सर्वाइकल कैंसर को लेकर यह एक राहत भरी खबर है। पिछले साढ़े तीन दशकों में इस बीमारी के मामलों में 53% की गिरावट दर्ज की गई है। इसके बावजूद देश में हर साल 79,000 से अधिक महिलाओं की मौत सर्वाइकल कैंसर से होती है। डॉक्टर का कहना है कि स्क्रीनिंग और शुरुआती पहचान से इस संख्या में काफी कमी लाई जा सकती है। स्वदेशी किट से जांच होगी आसान और तेजएम्स, आईसीएमआर, मुंबई के एनआईआरआरसीएच और नोएडा के एनआईसीपीआर ने मिलकर जनवरी 2024 में एचपीवी किट का ट्रायल शुरू किया था। इस किट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह 60 से 90 मिनट में जांच परिणाम दे सकती है।नैशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के 65वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में डॉ. भाटला ने बताया कि साल 1990 में हर एक लाख महिलाओं में 33.8 महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित होती थीं। वर्तमान में यह संख्या घटकर 18 प्रति लाख हो गई है। यह गिरावट शादी की उम्र बढ़ने, फर्टिलिटी दर में कमी, माहवारी से जुड़ी स्वच्छता और जागरूकता से संभव हुई है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि WHO के मानकों की तुलना में भारत में चार गुना अधिक महिलाएं अब भी इस बीमारी से प्रभावित हो रही हैं। मौजूदा स्क्रीनिंग प्रणाली की सीमाएंफिलहाल देश के अधिकतर अस्पतालों में पेप स्मीयर और राष्ट्रीय कार्यक्रम में वीआईए (विजुअल इंस्पेक्शन विद एसिटिक एसिड) जांच का इस्तेमाल होता है, जो प्रभावशीलता के मामले में सीमित हैं। डॉ. भाटला ने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने एचपीवी जांच को अधिक प्रभावी माना है और इसका इस्तेमाल बढ़ाने की सिफारिश की है। 2030 तक कैंसर खत्म करने का लक्ष्यडब्ल्यूएचओ का लक्ष्य है कि 2030 तक हर एक लाख में केवल 4 से कम महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से प्रभावित हों। इसके लिए जरूरी है कि 15 वर्ष तक की 90% लड़कियों का टीकाकरण किया जाए और 35 और 45 वर्ष की उम्र में महिलाओं की दो बार एचपीवी जांच हो।
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