वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए घातक है, प्रचंड गर्मी भी स्वास्थ्य के लिए घातक है- पर बढ़े वायु प्रदूषण के बीच सामान्य से अधिक तापमान का पहुंचना स्वास्थ्य के लिए जानलेवा के स्तर का अत्यधिक हानिकारक है। पिछले कुछ वर्षों से पूरी दुनिया में अत्यधिक तापमान के रिकार्ड लगातार टूटते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ वायु प्रदूषण का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिक अब तापमान और प्रदूषण के मिलाप का स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं और हरेक अध्ययन के बाद नतीजा एक ही रहता है- प्रदूषण और अत्यधिक तापमान के अलग-अलग प्रभावों की अपेक्षा इन दोनों का सम्मिलित प्रभाव कई गुना अधिक घातक है और भारत जैसे गरीब देशों पर इसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
सिंगापूर के वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण के दौरान अत्यधिक तापमान के स्वास्थ्य पर प्रभाव का वैश्विक विश्लेषण जियोहेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित किया है। इस अध्ययन में बताया गया है कि इस विषय पर अधिकतर अध्ययन अमीर देशों के समृद्ध शहरों में किए गए हैं जिनसे वैश्विक स्थिति का पता नहीं चलता है। इसका प्रभाव ग्लोबल साउथ, यानि गरीब देशों पर बहुत अधिक पड़ता है। वर्ष 1990 से 2019 के बीच हवा में पीएम2.5 की सांद्रता, तापमान और मृत्यु दर के वैश्विक आंकड़ों के साथ ही इस अध्ययन के लिए पहले किए गए अध्ययनों का भी विश्लेषण किया गया है। वैश्विक स्तर पर अत्यधिक तापमान के मामलों के साथ ही अत्यधिक तापमान के समय हवा में पीएम2.5 की सांद्रता और ऐसे घटनाओं की आवृत्ती भी बढ़ती जा रही है। यह आवृत्ति भले ही पश्चिमी देशों में अधिक बढ़ रही हो, पर इसका प्रभाव गरीब देशों पर अधिक बढ़ रहा है।
इस अध्ययन के अनुसार अत्यधिक तापमान की स्थिति में बढ़े वायु प्रदूषण की स्थिति में वर्ष 1990 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर 6,94,440 लोगों की असामयिक मृत्यु हो गई, जिसमें से 80 प्रतिशत से अधिक मौतें गरीब देशों में यानि ग्लोबल साउथ में दर्ज की गईं। वैश्विक स्तर पर अनुमानित कुल मौतों में से लगभग 21 प्रतिशत, यानि 1,42,765 मौतें अकेले भारत में होने का अनुमान है। भारत में मौतों की संख्या किस कदर है। अध्ययन के अनुसार दूसरे स्थान पर चीन और तीसरे स्थान पर काबिज तंजानिया में सम्मिलित तौर पर होने वाली मौतों से अधिक संख्या भारत में मौतों की है। इस मामले में हम वाकई विश्वगुरु हैं और ग्लोबल साउथ के लीडर भी। अमीर देशों में 32,227 मौतों के साथ अमेरिका सबसे आगे है।
स्वीडन के इंस्टिट्यूट ऑफ इन्वारमेंटल मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने भारत के 10 बड़े शहरों में वायु प्रदूषण और अत्यधिक गर्मी का अध्ययन किया है और इसे जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित किया है। इस अध्ययन को वर्ष 2008 से 2019 के बीच अहमदाबाद, बैंगलोर, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी में किया गया है।
वायु में पीएम2.5 और तापमान में गहरा संबंध है और इसका असर मृत्यु दर पर भी स्पष्ट होता है। हवा में पीएम2.5 की सांद्रता में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बृद्धि के दौरान सामान्य तापमान पर मृत्यु दर में 0.8 प्रतिशत की बृद्धि होती है, पर अत्यधिक तापमान की अवस्था में यह बृद्धि 4.6 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। पीएम2.5 की सांद्रता में 20 माइक्रोग्राम की वृद्धि के समय यदि तापमान अधिक रहता है तब मृत्यु दर में 8.3 प्रतिशत की वृद्धि और यदि पीएम2.5 की सांद्रता 100 माइक्रोग्राम तक बढ़ जाती है तब तापमान की बढ़ोत्तरी के दौरान मृत्यु दर 64 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
तापमान वृद्धि और वायु प्रदूषण कम करने के लक्ष्य और दावे, सभी केवल भाषणों में ही सीमित रहते हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल अकैडमी ऑफ साइन्सेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में जहां भी आर्थिक प्रगति हो रही है, प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, उन सभी क्षेत्रों में से महज 30 प्रतिशत क्षेत्र ऐसे हैं जहां कार्बन उत्सर्जन में कमी आ रही है। इन 30 प्रतिशत क्षेत्रों में से लगभग सभी क्षेत्र यूरोप में हैं। दूसरी तरफ उत्तरी अमेरिकी देशों और भारत समेत एशिया में स्थिति इसके ठीक विपरीत है। इस अध्ययन के लिए दुनिया के 1500 क्षेत्रों के आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन का पिछले 30 वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। इन 1500 क्षेत्रों से कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 85 प्रतिशत उत्सर्जित होता है। अध्ययन के अनुसार दुनिया के शून्य उत्सर्जन के तमाम दावों के बाद भी अब तक आर्थिक विकास को कार्बन उत्सर्जन से अलग नहीं किया जा सका है।
लान्सेट काउन्टडाउन शृंखला की 9वीं रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर प्रभाव से संबंधित है। इसमें बताया गया है कि प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण किस तरीके से पूरी दुनिया में गर्मी और चरम प्राकृतिक आपदाओं से मृत्यु के आंकड़े बढ़ रहे हैं, खाद्य असुरक्षा से कुपोषण का दायरा बढ़ता जा रहा है, जंगलों में आग के बढ़ते मामलों के कारण प्रदूषित हवा का प्रभाव पहले से अधिक लोगों पर पड़ रहा है और अनेक संक्रामक रोगों का दायरा बढ़ता जा रहा है।
इस दौर में जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर अभूतपूर्व खतरे बढ़ रहे हैं। रिकार्ड तोड़ गर्मी, मारक प्राकृतिक आपदाएं और जंगलों की आग का प्रभाव दुनिया के हरेक कोने में पड़ रहा है। दुनिया का 48 प्रतिशत हिस्सा भयानक सूखे की चपेट में रहा और दुनिया के अधिकतर हिस्सों में भयानक गर्मी का दौर 50 दिनों से भी अधिक समय तक रहा। पहले से भूखी आबादी में 15 करोड़ से भी अधिक नई आबादी जुड़ गई। वर्ष 1990 से अब तक चरम गर्मी के कारण 65 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी के मृत्यु दर में 167 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। डेंगू, मलेरिया और वेस्ट नाईल वायरस का प्रकोप पहले से अधिक भौगोलिक क्षेत्रों और आबादी पर पड़ रहा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार “पृथ्वी पर कोई अन्य स्थान ऐसा नहीं है जहां वायु प्रदूषण की चुनौती दक्षिण एशिया से ज्यादा कठिन हो। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान- जहां वैश्विक आबादी का 22.9 प्रतिशत हिस्सा रहता है- दुनिया के शीर्ष चार सबसे प्रदूषित देश हैं। वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण जीवन के कुल जितने वर्षों की क्षति होती है, उसमें से आधे से अधिक यानि 52.8 प्रतिशत क्षति उच्च प्रदूषण स्तर के कारण दक्षिण एशिया में होती है। यदि ये चार देश विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश के अनुरूप प्रदूषण कम कर दें तो औसत दक्षिण एशियाई नागरिक 5.1 वर्ष अधिक जीवित रहेगा, जबकि भारत नागरिकों की औसत उम्र में 5.2 वर्षों की वृद्धि होगी।
एक दूसरे अध्ययन के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर इसके मापे गए स्तर से भी अधिक रहता है। एनपीजे क्लीन एयर नामक जर्नल में यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के वैज्ञानिक डॉ यिन्ग चेन द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सर्दियों के समय जब दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक रहता है, उस दौरान हवा में नमी भी अत्यधिक रहती है। अत्यधिक नमी के कारण हवा में मौजूद बहुत छोटे कणों, जैसे पीएम2.5 में नमी के कारण इनका आकार बढ़ जाता है और ऐसे कण माप से बाहर पहुंच जाते हैं।
इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली की हवा के ऐरोसॉल में पानी की मात्रा 740 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुंच जाती है जो किसी भी बड़े शहर की तुलना में सर्वाधिक है। दिल्ली में दिसंबर-जनवरी महीने में वायु प्रदूषण का स्तर सर्वाधिक रहता है और इसी समय हवा में सुबह नमी भी 90 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। इस दौरान नमी के कारण पीएम कणों की माप वास्तविक सांद्रता की तुलना में 20 प्रतिशत तक कम हो पाती है। फरवरी-मार्च महीनों में हवा में नमी 80 प्रतिशत तक रहती है और पीएम की वास्तविक सांद्रता मापे गए सांद्रता की तुलना में 8.6 प्रतिशत अधिक रहती है। अप्रैल से जून के दौरान हवा में नमी बहुत कम रहती है, पर जुलाई से सितंबर के बीच मॉनसून के महीनों में हवा में नमी बढ़ती है, पर इस दौरान अधिकतर पीएम कण पानी के साथ बह जाते हैं और इससे इनकी सांद्रता प्रभावित नहीं होती है।
देश की 67.4 प्रतिशत आबादी अपनी सांस के साथ जो हवा लेती है, उसमें पीएम2.5 की सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानक से अधिक रहती है। अपनी बड़ी आबादी के कारण दुनिया के किसी भी देश की तुलना में वायु प्रदूषण का असर भारत में सबसे घातक होता है। हमारे देश में उत्तरी क्षेत्र और गंगा का मैदान- बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल- वायु प्रदूषण की दृष्टि से निकृष्ट है। देश के पूरे उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु औसतन 8 वर्ष कम हो रही है।
पूरे देश के सन्दर्भ में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसतन आयु 5.3 वर्ष कम हो रही है, यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुरूप यदि हम हवा में पीएम2.5 की सांद्रता रख पाते हैं तो लोगों की औसत आयु में 5.3 वर्ष की बढ़ोत्तरी होगी। यदि पीएम2.5 की सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की सीमा में रहता है, तब भी लोगों की औसत आयु में 1.8 वर्षों की बढ़ोत्तरी होगी।
वायु प्रदूषण के लिए कुछ वर्ष पहले तमाम योजनाएं बनाई गईं, बड़े तामझाम से नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को शुरू किया गया। शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर बड़े-बड़े एयर प्युरिफायर लगाए गए, महंगे वाटर गन और वाटर स्प्रिंकलर सडकों पर दौड़ने लगे और सडकों से धूल हटाने के लिए नई मशीनें दौड़ने लगीं, पर इसका क्या असर हुआ किसी को नहीं पता। इनमें से अधिकतर उपकरण अब काम भी नहीं करते। दूसरी तरफ दिल्ली में रूम एयर प्यूरीफायर का एक बड़ा बाजार खड़ा हो गया।
हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह है हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट। प्रदूषण भी अब एक इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। इस दौर में गुमराह करने का काम इवेंट मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है, इसके माध्यम से सबसे आगे वाले को धक्का मारकर सबसे पीछे और सबसे पीछे वाले को सबसे आगे किया जा सकता है। अब तो प्रदूषण नियंत्रण भी एक विज्ञापनों और होर्डिंग्स का विषय रह गया है, जिस पर लटके नेता मुस्कराते हुए भी दिन-रात गुबार में पड़े रहते हैं।
पब्लिक के लिए भले ही वायु प्रदूषण ट्रेजिक हो, हमारी सरकार और नेता इसे कॉमेडी में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सरकारें विरोधियों पर हमले के समय वायु प्रदूषण का कारण कुछ और बताती हैं, मीडिया में कुछ और बताती हैं, संसद में कुछ और बताती हैं और न्यायालय में कुछ और कहती हैं। दूसरी तरफ मीडिया कुछ और खबर गढ़ कर महीनों दिखाता रहता है। न्यायालय हरेक साल बस फटकार लगाता है, मीडिया और सोशल मीडिया पर खबरें चलती हैं, फिर दो-तीन सुनवाई के बाद मार्च-अप्रैल का महीना आ जाता है और न्यायालय का काम भी पूरा हो जाता है।
निरंकुश सत्ता के लिए जनता कुछ नहीं होती तभी हरेक कार्य एक इवेंट होता है, दिखावा होता है। चन्द्रमा और मंगल पर पहुंचना एक अंतरराष्ट्रीय दिखावा है, सो हम वहां पहुंच गए। दूसरी तरफ देश में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, इससे अधिकतर सामान्य नागरिक प्रभावित होते हैं- जाहिर है सत्ता इसे उपेक्षित विषय मानती है।
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