New Delhi, 9 अगस्त . विपक्ष की ओर से लगातार संसद में चुनाव आयोग के कामकाज और एसआईआर पर चर्चा की मांग की जा रही है. इसे लेकर कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा है.
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू संसद में चुनाव आयोग के कामकाज पर चर्चा की अनुमति देने से क्यों डर रहे हैं? यह कोई नई बात नहीं है, संसद ने दशकों में दर्जनों बार चुनाव आयोग के आचरण और चुनाव सुधारों पर चर्चा की है. आइए इतिहास पर नजर डालें.
उन्होंने Lok Sabha और राज्यसभा में चुनाव आयोग और चुनाव सुधारों पर 1957 से अब तक हुई बहस की पूरी जानकारी दी. राज्यसभा में चुनाव नियमों को रद्द करना, चुनावों का पुनर्निर्धारण और स्थगन, 1970, 1981, 1986, 1991, 2015 में चुनाव सुधारों पर चर्चा, धनबल का प्रयोग और कानूनों में तत्काल संशोधन की आवश्यकता पर चर्चा हुई थी.
मणिकम टैगोर ने कहा कि अगर Lok Sabha की बात करें तो सांसद ने बार-बार इन मुद्दों को उठाया है, जिनमें चुनाव सुधार (1981, 1983, 1986, 1990, 1995, 2005), बिहार और त्रिपुरा में चुनाव स्थगित करना, फोटो पहचान पत्र जारी करना, धांधली की जांच और विदेशी धन के आरोप के मुद्दे शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि यहां तक कि 1993 में चुनाव स्थगित करने जैसे मुख्य चुनाव आयोग के प्रभावशाली फैसलों पर भी दोनों सदनों में खुलकर बहस हुई थी. पिछली सरकारें भी नहीं छिपती थीं. उन्होंने संसद का सामना किया और जवाब दिया. चुनावों में धनबल (1978) से लेकर प्रवासी भारतीयों के लिए प्रॉक्सी वोटिंग (2015) तक, संसद चुनाव आयोग को जवाबदेह ठहराने का मंच रही है तो मोदी सरकार को अचानक चर्चा से एलर्जी क्यों हो गई है?
उन्होंने कहा कि अंधकार में लोकतंत्र दम तोड़ देता है. अगर संसद उस संस्था पर चर्चा नहीं कर सकती, जो हमारे चुनाव कराती है, तो जवाबदेही कहां रहेगी? किरेन रिजिजू और अमित शाह द्वारा चुने गए चुनाव आयोग को जांच से बचाना बंद करें. अगर पिछली सरकारों ने बिना किसी डर के इन बहसों की अनुमति दी थी तो आप क्यों नहीं? आप भारत की जनता से क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं?
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डीकेपी/
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