हर व्यक्ति को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, चाहे वह कोई विशेष व्यक्ति हो या आम इंसान। सृष्टि के नियमों के अनुसार, न केवल मनुष्य, बल्कि देवताओं को भी इन नियमों का पालन करना होता है। यही कारण है कि भगवान राम और भगवान कृष्ण को भी जन्म लेकर मृत्यु का सामना करना पड़ा। जीवन में हर व्यक्ति को अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करना होता है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि मृत्यु एक दिन हमारे दरवाजे पर दस्तक देगी।
यमराज का महत्व
मृत्यु के देवता यमराज को दक्षिण दिशा के लोकपाल के रूप में जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज पहले प्राणी थे जिनकी मृत्यु हुई थी। इस कारण से भगवान शिव ने उन्हें मरने वाले लोगों का शासक बनाया।
मृत्यु के समय, यमदूत आत्मा को स्वर्ग या नरक के द्वार पर ले जाते हैं, जहां यमराज आत्मा के कर्मों के आधार पर उसे दंडित करते हैं।
यमराज और अमृत की कहानी
एक समय यमुना के किनारे अमृत नाम का एक व्यक्ति रहता था, जो यमराज की पूजा करता था। उसे अपनी मृत्यु का डर सताता था और वह यमराज से दोस्ती करना चाहता था। यमराज उसकी तपस्या से प्रभावित हुए और अमरता का वरदान मांगने पर उन्होंने समझाया कि हर प्राणी को एक दिन मरना है।
अमृत ने यमराज से अनुरोध किया कि जब उसकी मृत्यु का समय आए, तो उसे पहले से सूचित किया जाए। यमराज ने यह वादा किया और अमृत ने अपनी साधना छोड़कर विलासितापूर्ण जीवन जीना शुरू कर दिया।
यमराज के चार संकेत
कुछ वर्षों बाद, अमृत के बाल सफेद होने लगे, उसके दांत टूट गए और उसकी दृष्टि कमजोर हो गई। यमराज ने उसे चार संकेत भेजे: बालों का सफेद होना, दांत गिरना, ज्ञानेन्द्रियों का कमजोर होना, और कमर का झुकना।
यमराज ने कहा कि ये सभी संकेत उसकी मृत्यु के निकटता के संकेत थे, लेकिन अमृत ने इन्हें नहीं समझा। जब वह यमलोक पहुंचा, तो उसने यमराज पर धोखा देने का आरोप लगाया।
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