हिंदू धर्म में अग्नि को विशेष स्थान दिया गया है। इसे देवताओं का साक्षी माना जाता है, और इसकी उपस्थिति में पूजा के कार्य सफल होते हैं। इसलिए, देवी-देवताओं के समक्ष दीपक जलाना अनिवार्य है। सनातन धर्म में दीपक का विशेष महत्व है।
दीपक जलाने का समय
सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा के साथ दीपक जलाने की परंपरा है। दीपक के बिना ईश्वर की आराधना अधूरी मानी जाती है। दीपक जलाने की दिशा का भी महत्व है, जो आचार्य पंडित आलोक पाण्ड्या की शिक्षाओं से जुड़ा है।
दीपक जलाने के नियम
भगवान की पूजा सुबह और शाम दोनों समय करना शुभ माना जाता है। आरती करते समय पहले थाली में स्वास्तिक बनाएं, फिर पुष्प अर्पित करें और अंत में दीपक जलाएं।
1. आरती से पहले और बाद में शंख अवश्य बजाएं, और यदि संभव हो तो आरती के बीच में भी शंख बजा सकते हैं।
2. आरती करते समय थाल को ॐ के आकार में घुमाएं।
3. भगवान की आरती करते समय उनके चरणों की ओर चार बार, नाभि की तरफ दो बार, और मुख की तरफ एक बार घुमाएं। इस प्रक्रिया को सात बार दोहराएं।
4. आरती के दौरान ध्यान रखें कि पहले से जले हुए दीपक में दुबारा बाती या कपूर न डालें। मिट्टी का दीपक हो तो नया लें, और धातु का हो तो उसे धोकर ही पुनः उपयोग करें।
5. देवी-देवताओं की आरती करते समय खड़े होकर करें। यदि खड़े नहीं हो सकते, तो ईश्वर से क्षमा मांगते हुए आरती पूरी करें।
आरती की लौ की दिशा
पूर्व दिशा भगवान विष्णु की दिशा मानी जाती है, इसलिए इस दिशा में आरती की लौ जलाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। दक्षिण दिशा यम और पितरों की दिशा है, इसलिए इस दिशा में संध्या की आरती दिखाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल सकती है।
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