जीवन में सफल होने के लिए जरूरी नहीं है कि आपके पास बड़ी - बड़ी डिग्रियां हो। कभी कभी हाथों का हुनर ही काफी होता है। आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलवाने जा रहे हैं, जिनका जीवन अभावों में बीता, बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद ना केवल पढ़ाई छूटी बल्कि कम उम्र में मजदूरी भी करनी पड़ी। हम बात कर रहे हैं पाबिबेन रबारी की। जो ऐसी सभी विषम परिस्थितियों से निकलकर आज न केवल करोड़पति बन चुकी हैं बल्कि 300 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं।
रबारी समुदाय की पहली महिला व्यवसायीरबारी समुदाय कढ़ाई, बुनाई के लिए ही जाना जाता है। पाबिबेन रबारी इस समुदाय की पहली महिला हैं, जिन्होंने वेबसाइट बनाई और अपनी परम्परा को देशभर में ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी पहुंचाया।
कठिन का बचपनपाबिबेन रबारी की सफलता की राह आसान नहीं थीं। कच्छ के एक छोटे से कस्बे कुकड़सर के एक गरीब परिवार में जन्म हुआ। चौथी तक पढ़ने के बाद उन्होंने लोगों के लिए काम करने शुरू कर दिए थे। कभो लोगों के लिए बाल्टीयों में पानी भरकर लाती तो कभी खेतों में काम करती। एक बाल्टी पानी के लिए केवल 1 रुपए मिलते थे। बाहर काम के साथ वे अपनी मां से कढ़ाई-बुनाई का भी काम सीखती थी, जो उनके सफल करियर का आधार बना।
विदेशियों को भाये डिजाइनरबारी समुदाय में महिलाओं को कढ़ाई सिखाई जाती है। जब पाबिबेन रबारी की शादी हुई तो उसमें कुछ विदेशी भी शामिल हुए। जिन्हें उनके डिजाइन हुए बैग उपहार में दिए गए। जो उन्हें बहुत पसंद आए। पाबिबेन ने भुज में एनजीओ के साथ मिलकर काम किया। जहां उन्होंने हरि जरी नामक कला की शुरुआत की। इस कला से वे कई महिलाओं के साथ मिलकर बैग, कंबल और कुशन कवर बनाने लगी।
पाबिबेन का विरोधसाल 2015 में पीएचडी धारक नीलेश प्रियदर्शी से मुलाक़ात के बाद पाबिबेन. कॉम शुरू करने की प्रेरणा मिली। लेकिन शुरुआत में गाँव और समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया। लेकिन जब पाबिबेन के बनाएं प्रोडक्ट्स को न केवल देश में बल्कि विदेशों में भो पहचान मिलने लगी तो सभी मान गए और गांव की अन्य औरतें भी इस काम में शामिल हो गई।
आज उनके डिजाइन बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड में भी पसंद किए जाते हैं। वे कौन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट से लेकर शार्क टैंक इंडिया में भी नजर आ चुकी हैं। कोरोना महामारी के समय भी अनोखे आईडिया से 35 लाख से ज्यादा की सेल की। आज वे करोड़ों की मालकिन बन चुकी हैं। लगभग 300 महिलाओं को काम देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।
रबारी समुदाय की पहली महिला व्यवसायीरबारी समुदाय कढ़ाई, बुनाई के लिए ही जाना जाता है। पाबिबेन रबारी इस समुदाय की पहली महिला हैं, जिन्होंने वेबसाइट बनाई और अपनी परम्परा को देशभर में ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी पहुंचाया।
कठिन का बचपनपाबिबेन रबारी की सफलता की राह आसान नहीं थीं। कच्छ के एक छोटे से कस्बे कुकड़सर के एक गरीब परिवार में जन्म हुआ। चौथी तक पढ़ने के बाद उन्होंने लोगों के लिए काम करने शुरू कर दिए थे। कभो लोगों के लिए बाल्टीयों में पानी भरकर लाती तो कभी खेतों में काम करती। एक बाल्टी पानी के लिए केवल 1 रुपए मिलते थे। बाहर काम के साथ वे अपनी मां से कढ़ाई-बुनाई का भी काम सीखती थी, जो उनके सफल करियर का आधार बना।
विदेशियों को भाये डिजाइनरबारी समुदाय में महिलाओं को कढ़ाई सिखाई जाती है। जब पाबिबेन रबारी की शादी हुई तो उसमें कुछ विदेशी भी शामिल हुए। जिन्हें उनके डिजाइन हुए बैग उपहार में दिए गए। जो उन्हें बहुत पसंद आए। पाबिबेन ने भुज में एनजीओ के साथ मिलकर काम किया। जहां उन्होंने हरि जरी नामक कला की शुरुआत की। इस कला से वे कई महिलाओं के साथ मिलकर बैग, कंबल और कुशन कवर बनाने लगी।
पाबिबेन का विरोधसाल 2015 में पीएचडी धारक नीलेश प्रियदर्शी से मुलाक़ात के बाद पाबिबेन. कॉम शुरू करने की प्रेरणा मिली। लेकिन शुरुआत में गाँव और समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया। लेकिन जब पाबिबेन के बनाएं प्रोडक्ट्स को न केवल देश में बल्कि विदेशों में भो पहचान मिलने लगी तो सभी मान गए और गांव की अन्य औरतें भी इस काम में शामिल हो गई।
आज उनके डिजाइन बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड में भी पसंद किए जाते हैं। वे कौन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट से लेकर शार्क टैंक इंडिया में भी नजर आ चुकी हैं। कोरोना महामारी के समय भी अनोखे आईडिया से 35 लाख से ज्यादा की सेल की। आज वे करोड़ों की मालकिन बन चुकी हैं। लगभग 300 महिलाओं को काम देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।
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