Next Story
Newszop

वैज्ञानिकों ने बनाई कैंसर की ऐसी दवा जिससे मरीज़ों के बचने की संभावना हुई दोगुना

Send Push
Laura Marston लॉरा मार्स्टन को छह साल पहले पता चला कि उन्हें जीभ का कैंसर है

इम्युनोथेरपी दवा को लेकर हाल में हुए एक क्लिनिकल ट्रायल में पता चला है कि इससे सिर और गर्दन के कैंसर से जूझ रहे मरीज़ों की ज़िंदगी लंबी हो सकती है और उनमें कैंसर के दोबारा लौटने की आशंका भी कम हो सकती है.

इस रीसर्च में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि बीते 20 दशकों में मुश्किल से इलाज की संभावना वाले इस कैंसर के मरीज़ों के लिए ये सफलता का पहला संकेत है.

डर्बीशायर में रहने वाली 45 साल की लॉरा मार्स्टन को छह साल पहले पता चला कि वो गंभीर रूप से जीभ के कैंसर से पीड़ित है. उन्हें बताया गया था कि उनके बचने की संभावना कम है.

लॉरा कहती हैं कि वो इस बात से खुश हैं कि वो इम्युनोथेरपी दवा के ट्रायल का हिस्सा बनीं. वो कहती हैं, "मुझे आश्चर्य है कि मैं अभी ज़िंदा हूं."

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए

सर्जरी से पहले और बाद में उन्हें इम्युनोथेरपी दवा दी गई थी. रीसर्चर्स के अनुसार इस दवा की मदद से उनका शरीर ये सीख सकता है कि कैंसर फिर लौटे तो उस पर कैसे हमला कर उसे नष्ट करना है.

सिर और गर्दन के कैंसर का इलाज बेहद मुश्किल होता है. बीते दो दशकों में इस दिशा में मरीज़ों का इलाज करने की संभावनाओं और मरीज़ों के जीवन में कोई अधिक बदलाव नहीं हुआ है.

सिर और गर्दन के एडवांस्ड कैंसर से पीड़ित आधे से अधिक मरीज़ों की पांच साल के भीतर मौत हो जाती है.

2019 में लॉरा को पता चला था कि उन्हें कैसर है. उनकी जीभ पर एक अल्सर हो गया था जो ठीक ही नहीं हो रहा था. डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि उनके बचने के चांसेस केवल 30 परसेंट हैं.

उन्हें बचाने के लिए जो बड़ा कदम लेना था और वो था जीभ काटकर हटा देना. साथ ही गरदन में मौजूद लिम्फ नोड्स को हटाना. इसके बाद उन्हें नए सिरे से बोलना और खाना सीखना पड़ता.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "मैं 39 साल की थी और पूरी तरह टूट चकी थी."

इम्युनोथेरपी दवा के असर का ट्रायल image Getty Images 2019 में लॉरा को पता चला था कि उन्हें कैसर है

कैंसर के इलाज के नए तरीके खोजने के लिए हो रही अंतरराष्ट्रीय स्टडी में लंदन के कैंसर रीसर्च इंस्टीट्यूट के जानकारों को भी साथ लिया गया था. इस स्टडी में क़रीब 350 से अधिक मरीज़ों को इम्युनोथेरपी दवा, पेमब्रोलिज़ुमैब दी गई.

मरीज़ों के शरीर के रक्षा कवच को और मज़बूत करने के उद्देश्य से उन्हें सर्जरी से पहले और बाद में ये दवा दी गई.

यूके में हो रहे इस क्लिनिकल ट्रायल का नेतृत्व कर रहे प्रोफे़सर केविन हैरिंगटन बताते हैं, "हम शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मौक़ा देते हैं कि वो ट्यूमर को अच्छी तरह से देखे ताकि वो ट्यूमर से लड़ने के लिए ज़रूरी प्रतिरक्षा तैयार कर सके. फिर, ट्यूमर को हटाने के बाद, हम एक साल तक लगातार दवा देकर उस प्रतिरक्षा की प्रक्रिया को बढ़ाते रहते हैं."

वहीं इस दौरान समान संख्या में अन्य मरीज़ों को सामान्य देखभाल दी गई. ये मरीज़ भी इसी तरह के कैंसर से पीड़ित थे. उन्हें भी सिर और गर्दन का कैंसर था, जो शरीर के बाक़ी हिस्से में नहीं फैला था.

नए रुख के सकारात्मक नतीजे देखने को मिले. इससे मरीज़ों में कैंसर मुक्त रहने की अवधि दोगुनी हो गई, औसतन ये अवधि ढाई साल से बढ़कर पांच साल हो गई.

तीन साल के बाद, पेमब्रोलिज़ुमैब दिए गए मरीज़ों में शरीर के अन्य हिस्सों में कैंसर के लौटने का जोखिम 10 फीसदी तक कम हो गया.

'मुझे मेरी ज़िंदगी वापस मिली'

इस बात को छह साल हो गए हैं और लॉरा अब फुलटाइम काम कर रही हैं. वो कहती हैं, "मैं बेहतर हूं और अच्छा काम कर रही हूं."

वो कहती हैं, "मेरे लिए ये चमत्कार की तरह है क्योंकि मैं यहां हूं और मैं आपसे बात कर सकती हूं. उम्मीद नहीं थी कि मैं इतनी दूर तक आ सकूंगी. मेरी बीमारी को लेकर जो कहा गया था वो ख़तरनाक था."

लॉरा के बाएं हाथ से कुछ मासपेशियां निकाली गई थीं ताकि जीभ कटने से जो खाली जगह बन गई है उसे भरा जा सके. उनके लिए ये सफर आसान नहीं था.

ल़ॉरा कहती हैं, "इस अद्भुत इम्युनोथेरपी ने मुझे मेरी ज़िंदगी वापस दी है."

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस ट्रायल के नतीजों में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सर्जरी से पहले मरीज़ों को दवा देने की है. इससे उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति ये सीख जाती है कि उसका मुक़ाबला किससे है और अगर कैंसर फिर लौटने की कोशिश करता है तो उसके सेल्स खोजकर उन्हें नष्ट कर देती है.

प्रोफे़सर हैरिंगटन कहते हैं कि इम्युनोथेरपी के ज़रिए इन मरीजों की "दुनिया बदल सकती है."

वो कहते हैं, "इससे पूरे शरीर में कैंसर फैलने की आशंका काफी कम हो जाती है क्योंकि उस स्थिति में इसका इलाज करना बेहद मुश्किल होता है."

सिर और गर्दन के कैंसर के मामले image ANI 13 अक्तूबर को हर साल भारत में ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है, एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2040 तक कैंसर के 21 लाख मामले होंगे

यूके में हर साल सिर और गर्दन के कैंसर के 12,800 नए मामले दर्ज किए जाते हैं.

वहीं में छपे एक शोधपत्र के अनुसार अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, अफ़्रीका और ब्राज़ील की तुलना में भारत में सिर और गर्दन के कैंसर के मामले अधिक है.

इस शोधपत्र में ग्लोबोकैन 2020 की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत में साल 2040 तक कैंसर के 21 लाख मामले होंगे, जो 2020 की तुलना में 57.5 फ़ीसदी अधिक होंगे.

इस शोधपत्र के अनुसार, भारत में सभी तरह के कैंसर के मामलों में से 30 फीसदी मामले सिर और गर्दन में कैंसर के होते हैं.

प्रोफे़सर हैरिंगटन का कहना है कि इलाज का ये तरीका कुछ मरीज़ों के लिए "विशेष रूप से अच्छा" साबित हुआ, लेकिन यह देखना "एक्साइटिंग" होगा कि इस ट्रायल में शामिल सभी मरीज़ों को इससे फायदा पहुंचे. उन्होंने कहा कि इस दवा को अब सरकारी स्वास्थ्य सेवा एनएचएस के ज़रिए भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

इस स्टडी के नतीजों को अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी (एएससीओ) की सालाना बैठक में भी प्रस्तुत किया जा रहा है.

कीनोट नाम के इस क्लिनिकल ट्रायल में 24 देशों के 192 अस्पताल शामिल थे. इसका नेतृत्व सेंट लुई में मौजूद वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल ने किया था और इसके लिए फंडिग की व्यवस्था एमएसडी नाम की कंपनी ने की थी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Loving Newspoint? Download the app now