अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 15 अगस्त को बहुत ही गर्मजोशी से मिले थे.
पुतिन से मिलते हुए ट्रंप के हावभाव और उसके बाद के बयानों से ऐसा कहीं नहीं लगा, रूस से वह यूक्रेन के मामले में बहुत नाराज़ हैं.
इस बातचीत पर भारत की भी नज़र टिकी थी.
कहा जा रहा था कि अगर मुलाक़ात अच्छी रहती है तो भारत के ख़िलाफ़ ट्रंप ने रूस से तेल ख़रीदने के बदले जो 25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया है, वो ख़त्म हो सकता है.
इसके बाद भारत पहले से लगे 25 फ़ीसदी टैरिफ़ को कम कराने की कोशिश करेगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और भारत पर 27 अगस्त से 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लागू हो जाएगा.
इस मुलाक़ात के बाद भी भारत के प्रति अमेरिका की सख़्ती में कोई कमी नहीं आई है. पीटर नवारो व्हाइट हाउस में ट्रेड और मैन्युफैक्चरिंग के काउंसलर हैं.
नवारो ने ट्रंप और पुतिन की मुलाक़ात के तीन दिन बाद ब्रिटिश अख़बार फाइनैंशियल टाइम्स में एक आर्टिकल लिखा था. इसमें नवारो ने भारत को आड़े हाथों लिया है.
पीटर नवारो ने लिखा है, ''अमेरिकी ग्राहक भारतीय सामान ख़रीद रहे हैं. भारत इस सामान की बिक्री से मिलने वाले डॉलर को सस्ते दाम पर रूसी तेल ख़रीद में लगा रहा है. रूसी तेल को भारत रिफ़ाइन कर दुनिया भर में बेच रहा है. भारतीय मुनाफ़ाखोर रूस के ख़ामोश पार्टनर बने हुए हैं. रूस यूक्रेन पर लगातार चोट कर रहा है और भारत इसमें मदद कर रहा है.''
पीटर नवारो ने लिखा है कि अगर भारत चाहता है कि अमेरिका उसे स्ट्रैटिजिक पार्टनर के रूप में देखे तो उसे व्यवहार भी इसी तरह से करना चाहिए.
पुतिन और ट्रंप की गर्मजोशी
कहा जा रहा है कि ट्रंप और पुतिन के बीच की गर्मजोशी से भारत को कोई फ़ायदा नहीं होने जा रहा है बल्कि इसका फ़ायदा केवल रूस और अमेरिका को ही होगा.
अमेरिका ख़ुद रूस से कारोबार कर रहा है और चीन भारत की तुलना में ज़्यादा रूस से तेल ख़रीद रहा है. लेकिन ट्रंप पुतिन का स्वागत कर रहे हैं और चीन पर टैरिफ़ लगाने के फ़ैसले को टालते जा रहे हैं.
ऐसे में कहा जा रहा है कि ट्रंप की भारत पर सख़्ती की वजह रूस से तेल ख़रीदना नहीं है.
पाकिस्तान के जाने-माने लेखक और राजनीतिक विश्लेषक परवेज़ हुदभाई कहते हैं कि ट्रंप की सख़्ती का कारण तेल नहीं बल्कि यह ट्रंप और मोदी के स्वाभिमान का टकराव है.
हुदभाई कहते हैं, ''ट्रंप को यह रास नहीं आया कि मोदी ने युद्धविराम कराने का श्रेय नहीं दिया. मोदी के लिए यह संभव नहीं था कि अपने देश के भीतर यह स्वीकार करें कि ट्रंप के कहने पर युद्धविराम किया. ऐसे में मुझे लगता है कि यह दोनों नेताओं के स्वाभिमान का टकराव ज़्यादा है.''
अमेरिका वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भी अलास्का में ट्रंप और पुतिन की मुलाक़ात से पहले भारत को धमकी दी थी. स्कॉट ने कहा था कि अगर पुतिन के साथ बातचीत ठीक नहीं रही तो भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ़ और बढ़ सकता है. उन्होंने कहा था कि यूरोप को भी भारत के ख़िलाफ़ इस फ़ैसले में शामिल होना चाहिए.
थिंक टैंक अनंता सेंटर विदेशी नीति से जुड़े मुद्दों पर काम करता है.
इसकी सीईओ इंद्राणी बागची ने स्कॉट के बयान का वीडियो क्लिप रीपोस्ट करते हुए लिखा है, ''यह बहुत ख़तरनाक है. पश्चिम का मानना है कि भारत रूस के लिए ख़ास है, इसलिए पुतिन को साधने के लिए भारत को सज़ा दो. पुतिन अपने हितों से डिगते नहीं हैं और उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि भारत को नुक़सान हो रहा है. ऐसे में भारत एक पंचिंग बैग बन जाएगा और उन नतीजों से भी प्रभावित होगा, जिनमें उसका कोई हाथ नहीं होगा.''
अमेरिका की भारत पर बढ़ती सख़्ती को लेकर दुविधा सिर्फ ट्रंप तक सीमित नहीं है, कई विश्लेषक रूस को भी शक की नज़र से देख रहे हैं.
- पाकिस्तान में क्या रेयर अर्थ मिनरल्स का ख़ज़ाना मिल गया है? मुनीर बोले- 5 साल में बदल जाएगी तस्वीर
- रूस को लेकर बढ़ा दबाव, क्या भारत झुकेगा या उसकी दुविधा बढ़ेगी?
- अमेरिका क्या भारत में रूस की जगह ले सकता है?
थिंक टैंक ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन की सीनियर फेलो तन्वी मदानने इंद्राणी बागची की पोस्ट को रीपोस्ट करते हुए लिखा है, ''अगर ट्रंप भारत को परेशान करेंगे तो पुतिन को फ़ायदा होगा. भारत और अमेरिका के संबंध ख़राब होंगे तो भारत में रूस से संबंध और मज़बूत करने की मांग होगी. ऐसे में भारत चीन के साथ समझौते के लिए ज़्यादा तैयार दिखेगा.''
तन्वी मदान ने एक्स पर लिखा है, ''भारत में कुछ लोग सोच रहे हैं कि हम रणनीतिक स्वायत्तता की ओर लौटेंगे या चीन के क़रीब जाएंगे. मुझे नहीं लगता है कि ट्रंप भारत के मामले में इस तरह से सोचते हैं. ट्रंप को अभी चीन से प्रतिस्पर्धा की कोई परवाह नहीं है. यहाँ कई लोग सोचते हैं कि भारत कभी रणनीतिक स्वायत्तता नहीं छोड़ सकता है.''
तन्वी मदान पूछ रही हैं कि रूस और पाकिस्तान के गहराते संबंधों से भारतीय उतना परेशान क्यों नहीं होते हैं, जितना अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों से होते हैं.
मदान ने लिखा है, ''रूस अमेरिका की तुलना में पाकिस्तान में एक समय बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता देश रहा है. इस मामले में भारत की शिकायत भी रही है. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि भारत की शिकायत से रूस पाकिस्तान से एफ़डीएफ़ए प्रोजेक्ट से पीछे हट जाएगा. रूस को पता है कि अमेरिका के साथ भारत की तनातनी हमेशा के लिए नहीं है. अमेरिका को भारतीय बाज़ार की ज़रूरत है. तालिबान को लेकर हाल में रूस और पाकिस्तान के बीच सहयोग को देखा जा सकता है. गलवान में झड़प के चार महीने बाद ही चीन और रूस में रक्षा सहयोग बढ़ गया था.''
तन्वी मदान ने लिखा है, ''रूस और अमेरिका के संबंधों में सुधार से अमेरिका और भारत के संबंधों पर दबाव कम हो सकता है. लेकिन भारत में कई लोगों को लगता था कि अमेरिका और रूस में दोस्ती से रूस की चीन से दूरी बढ़ेगी. लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा नहीं होगा. ट्रंप ने कहा था कि वह चीन और रूस दोनों से डील चाहते हैं.''
''मुझे लगता है कि भारत के लिए यह ज़्यादा समस्या पैदा करेगा. पुतिन ख़ुशामदी को एक टूल के रूप में देखते हैं और हमें इसे कमज़ोरी के संकेत के रूप में नहीं देखना चाहिए. लोगों को बोरिस येल्तसिन और क्लिंटन की बातचीत या 1960-70 के दशक को याद करना चाहिए. रूस को भारत की क़ीमत पर भी फ़ायदा उठाने से कोई गुरेज़ नहीं था. इस मामले में अमेरिका इकलौता नहीं है.''
कई लोग मानते हैं कि पुतिन को जहाँ लगता है कि अमेरिका के अहम सहलाने से उन्हें फ़ायदा हो सकता है तो इसका इस्तेमाल वह ख़ुशी-ख़ुशी कर लेते हैं. मिसाल के तौर पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप और पुतिन के बीच फोन पर बात हुई थी.
इस बातचीत के बाद रूस की तरफ़ से जो बयान आया था, उसमें ट्रंप को युद्धविराम का श्रेय दिया गया था. रूस की तरफ़ से ऐसा बयान तब आया था, जब भारत ट्रंप के दावों को ख़ारिज कर रहा था. 2019 में जब भारत और पाकिस्तान में तनातनी हुई थी, तब रूस ने भी मध्यस्थता की पेशकश की थी.
भारत के लिए चुनौतीदिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ राजन कुमार कहते हैं कि भारत के लिए विदेश नीति के मोर्चे पर अभी बहुत बड़ी चुनौती है.
डॉ राजन कुमार कहते हैं, ''भारत पर एक गुट चुनने का दबाव बढ़ता जा रहा है, जो कि किसी भी लिहाज से भारत के हक़ में नहीं है. भारत न तो अमेरिका के लिए रूस को छोड़ सकता है और न ही केवल रूस के साथ रह सकता है. भारत पर दबाव साफ़ दिख रहा है. प्रधानमंत्री मोदी का एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन) समिट में चीन जाना बताता है कि भारत ग़ैर-अमेरिकी नेतृत्व वाले गुट में ज़्यादा सक्रिय होना चाहता है. प्रधानमंत्री मोदी चीन तब जाएंगे, जब कुछ महीने पहले ही चीन ने भारत के ख़िलाफ़ युद्ध में पाकिस्तान को मदद की थी.''
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने मंगलवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की. इसके बाद वांग यी पाकिस्तान जा रहे हैं. चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वांग यी पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ रणनीतिक संवाद में शरीक होंगे.
वांग यी के इस दौरे को लेकर भारत के जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा है, ''सात से 10 मई के बीच भारत और पाकिस्तान में सैन्य संघर्ष के दौरान चीन ने अदृश्य थर्ड पार्टी की तरह व्यवहार किया था. चीन ने पाकिस्तान को रीयल टाइम ख़ुफ़िया सूचना दी थी. इसके अलावा रडार और सैटलाइट इनपुट्स भी दिए थे. ऐसा भारत के डिप्टी आर्मी चीफ़ ने कहा था.''
चेलानी ने लिखा है, ''मोदी इस महीने के अंत में चीन जाने वाले हैं. यह दौरा तब हो रहा है, जब चीन ने अप्रैल 2020 से पहले लद्दाख में भारत के नियंत्रण में जितना इलाक़ा था, उसे ख़ाली नहीं किया है. मोदी का आगामी दौरा संकेत दे रहा है कि भारत ने अप्रैल 2020 से पहले लद्दाख की यथास्थिति बहाल करने की मांग छोड़ दी है.''
वांग यी की सोमवार को जयशंकर से मुलाक़ात के बाद चीन की ओर से मंदारिन भाषा में जो बयान जारी हुआ था, उसमें दावा किया गया कि भारत ने ताइवान को चीन का हिस्सा मान लिया है. हालांकि भारत के तरफ़ से वांग यी के इस दौरे में आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है.
शंघाई के फ़ुदान यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया से चीन के संबंधों के एक्सपर्ट लिन मिनवांग ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ''अगर भारत चीन से संबंधों को सुधारना चाहता है तो चीन इसका स्वागत करेगा लेकिन भारत को कोई छूट नहीं मिलेगी. चीन अपने हितों से समझौता नहीं करेगा और न ही पाकिस्तान को समर्थन देना बंद करेगा. भारत का वर्तमान रुख़ प्राथमिक रूप से स्ट्रैटिजिक समीकरण के आधार पर है. अमेरिका से ख़राब हो रहे संबंधों के बीच भारत ने चीन से संबंध सुधारने का फ़ैसला किया है. मेरा मानना है कि चीन कम से कम बहुत सतर्कता से इन चीज़ों का आकलन कर रहा है.''
भारतीय मूल के जाने-माने अमेरिकी पत्रकार फ़रीद ज़कारिया ने सीएनएन के एक प्रोग्राम में कहा है कि भारत के प्रति डोनाल्ड ट्रंप की शत्रुता बड़ी रणनीतिक ग़लती है.
ने कहा, ''पिछले 25 सालों से अमेरिका ने भारत को स्ट्रैटिजिक पार्टनर के रूप में देखा लेकिन डोनाल्ड ट्रंप इस नीति को बदल रहे हैं. एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में भारत को अमेरिका के लिए अहम माना जा रहा था. लेकिन ट्रंप ने भारत की अर्थव्यवस्था को मृत बताकर अपमानित किया. सच यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है.''
फ़रीद ज़कारिया ने कहा, ''अब अगर ट्रंप भारत के प्रति अपना रुख़ बदलते भी हैं, तब भी नुक़सान हो चुका है. भारत में अमेरिका को लेकर अविश्वास बढ़ा है. भारतीयों को लग रहा है कि अमेरिका ने अपना असली रंग दिखा दिया.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
Hari Hara Veera Mallu OTT Release: अब घर बैठे देखिए पवन कल्याण, बॉबी देओल और निधि अग्रवाल की फिल्म, जानिए कब-कहां
सीरियाई और इजरायली अधिकारियों ने स्थिरता बढ़ाने पर बातचीत की
इन 5 आसान आसनों से करें योगासन की शुरुआत, तन और मन दोनों रहेंगे स्वस्थ
WhatsApp यूजर्स ध्यान दें, खतरे में ग्रुप चैट की प्राइवेसी, Paytm फाउंडर ने दी चेतावनी
बांके बिहारी मंदिर न्यास गठन पर भड़के रामभद्राचार्य, पूछा– जब मस्जिद-चर्च पर नियंत्रण नहीं तो...