भारत से चार कार्डिनल (पादरी) में से तीन को पोप फ्रांसिस ने नियुक्त किया था. यह सभी उनके अंतिम संस्कार के कुछ सप्ताह बाद उनके उत्तराधिकारी का फ़ैसला करने वाले कॉन्क्लेव में शामिल होंगे.
सभी कार्डिनल ने पोप फ्रांसिस की करुणा के लिए उनकी प्रशंसा की है. इसके साथ ही चर्च में लाए गए बदलावों की भी तारीफ़ की है.
हैदराबाद के आर्कबिशप कार्डिनल एंथनी पूला ने उन्हें 'दया का पैग़म्बर, हाशिये के लोगों के लिए प्रेरक' बताया है.
दुनिया के पहले दलित कार्डिनल के यह शब्द भारत में काफ़ी हद तक चर्च के बड़े वर्गों की राय का प्रतीक बन गए हैं.
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मेजर आर्कबिशप सिरोस-मलंकरा कैथोलिक चर्च के कार्डिनल बेसिलियोस क्लेमिस और गोवा और दमन के आर्कबिशप कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ ने भी पोप फ्रांसिस की उनके समावेशी नज़रिए की प्रशंसा की है.
चौथे कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवाकड पूरी तरह से अलग लीग में हैं. वह 2006 से वेटिकन डिप्लोमैटिक सर्विस में हैं और पोप फ्रांसिस ने उन्हें कार्डिनल बनाने के लिए चुना था.
वह मूल रूप से सिरो मालाबार चर्च से जुड़े थे लेकिन उन्हें वेटिकन की डिप्लोमैटिक सर्विस के प्रतिनिधि के रूप में पहचाना जाता है.
कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड 2021 से पोप के दौरे में शामिल थे और इसी दौरान दुनिया को पोप फ्रांसिस के मज़बूत उदार और अंतर-धार्मिक नज़रिए का एहसास हुआ था.
भारत में चर्च के हलकों में क्या चर्चा हो रही है?क्या भारतीय कार्डिनल मतदाता उदार नज़रिए की "निरंतरता" का समर्थन करने जा रहे हैं जिसने पोप फ्रांसिस को हाल के दशकों में चर्च का बहुत प्रिय प्रमुख बनाया है?
या वह उस व्यक्ति के साथ जाएंगे जिसे बहुमत मिलता दिख रहा है?
इन सवालों के जवाब मिले-जुले हैं, हालांकि कुछ लोग आलोचना करने वाले लोगों पर भारी पड़ते हैं जबकि कुछ पूरी तरह से सकारात्मक हैं.
केरल के एर्नाकुलम में एक पादरी ने नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी हिंदी को बताया, "आमतौर पर भारतीय चर्च और उसके प्रतिनिधियों ने रूढ़िवादी नज़रिया बनाए रखा है. जो भी सत्ता में आता है, उसका समर्थन किया जाता है, न कि किसी विशेष धार्मिक रुख़ के कारण. हमारे पास पोप फ्रांसिस जैसा उदार या आधुनिक नज़रिया नहीं है."
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फिलॉसफी, रिलीजियस स्टडीज एंड सोशल साइंसेज़ में दर्शनशास्त्र और सामाजिक व्यवहार के प्रोफेसर फादर जोस मालीकल को उम्मीद है कि भारतीय मतदाता निरंतरता के पक्ष में जाएंगे.
फादर मालीकल ने बीबीसी हिंदी को बताया, "कार्डिनल एंथनी पूला उन लोगों में से एक हैं जिनकी सोच उदार है. वह समाज में वंचित वर्गों को आगे बढ़ाने के बारे में सोचने में विश्वास करते हैं. कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड की सोच पोप फ्रांसिस से अलग नहीं हैं. कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ एक मध्यमार्गी हैं लेकिन वह ऐसे व्यक्ति हैं जो दक्षिणपंथी या रूढ़िवादी पक्ष की ओर झुकाव नहीं रखते हैं."
चेन्नई के सुइट कॉलेज ऑफ थियोलॉजी में धर्मशास्त्र और रेक्टर के प्रोफेसर फादर राज इरुदया कहते हैं कि कॉन्क्लेव में भारतीय प्रतिनिधि निरंतरता के ख़िलाफ़ मतदान नहीं करेंगे.
वो कहते हैं, "उन्होंने पोप फ्रांसिस द्वारा लाए गए सुधारों को देखा है. बहुत से बिशपों ने उनके अंतर-धार्मिक संवाद या धर्मसभा चर्च के प्रति सकारात्मक रुख को नहीं अपनाया है जो महिलाओं और अन्य लोगों की समावेशिता का माध्यम था."
फादर इरुदया ने बीबीसी हिंदी को बताया, "उन्होंने देखा कि जब पोप फ्रांसिस ने प्रवासियों को गले लगाने का संदेश दिया तो चर्च का विस्तार कैसे हुआ? तमिलनाडु में हिंदी भाषी प्रवासियों के लिए विशेष सेवाएं शुरू की गईं और उत्तर पूर्व से आने वाले लोगों के लिए उत्तर पूर्व की भाषाओं में प्रार्थना सभा आयोजित की गई?"
उन्होंने कहा, "यह सर्व विदित है कि कॉन्क्लेव में भारतीय प्रतिनिधि आमतौर पर कॉन्क्लेव की भावना को देखते हैं और मतदान करते हैं."
एर्नाकुलम के सिरो मालाबार चर्च के प्रवक्ता फादर एंथनी वडक्करा ने बीबीसी हिंदी से कहा, "कैथोलिक चर्च की संरचना बहुत मजबूत और साफ़ है. इसलिए जब नए पोप को अधिकार सौंपा जाता है, तो आमतौर पर पिछले पोप की तरफ़ से किए जा रहे अच्छे कामों को जारी रखा जाता है.''
कॉन्क्लेव में भाग लेने वाले 252 कार्डिनल्स में से 135 की उम्र 80 साल से ज़्यादा है. उनके पास वोट का अधिकार नहीं है.
इसके अलावा 108 कार्डिनल्स की नियुक्ति पोप फ्रांसिस ने की थी. चर्च के हलकों में इस बात पर बहस चल रही है कि उनका उत्तराधिकारी अफ्रीकी, इतालवी, फ़िलिपीनो या अमेरिकी होगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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