
इस फ़ेस्टिव सीज़न में भारतीय सर्राफ़ा बाज़ारों की चमक सिल्वर की किल्लत के आगे फीकी पड़ रही है.
रिकॉर्ड हाई क़ीमतों के बावजूद भी लोग सिल्वर ख़रीदने को तैयार हैं लेकिन कई दुकानदारों के पास चांदी है ही नहीं.
इंडियन बुलियन ज्वैलर्स असोसिएशन की वेबसाइट के मुताबिक़, 14 अक्तूबर को चांदी 1,78,100 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिक रही थी.
चांदी की लगातार बढ़ती क़ीमतें ही इस शॉर्टेज की मुख्य वजह है.
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ऑल इंडिया ज्वैलर्स एंड गोल्डस्मिथ फ़ेडरेशन (एआईजेजीएफ़) के नेशनल सेक्रेटरी बिमल मेहता ने बताया कि "मार्केट में अचानक से डिमांड आई है. चांदी के सिक्कों, बार और सिल्लियों की मांग आ रही है. लोग पैसे लेकर घूम रहे हैं लेकिन उन्हें चांदी मिल नहीं रही."
बिमल मेहता बताते हैं कि मार्केट में इस समय चांदी 30 हज़ार रुपये तक के प्रीमियम पर बिक रही है. इसके बाद भी कस्टमर लेने को तैयार बैठे हैं. इसके बावजूद उन्हें अक्सर चांदी नहीं मिल पा रही है.
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क्या पहले भी चांदी की इस तरह की डिमांड आती रही है?
इस सवाल पर बिमल मेहता ने कहा, "30 सालों के करियर में पहली बार चांदी की इतनी डिमांड देखी है. चांदी पिछले साल 75 हज़ार रुपये किलो औसत भाव पर मिल रही थी. किसी ने उम्मीद ही नहीं की थी."
वो कहते हैं, "पंजाब से लेकर कन्याकुमारी तक, हर किसी को चांदी चाहिए, हमने विदेश से चांदी ख़रीदने की कोशिश की लेकिन वहां भी शॉर्टेज है. हर जगह चांदी की मांग बनी हुई है."
दरअसल, फ़ेस्टिव सीज़न की ख़रीदारी हो या निवेश, दोनों ही लिहाज़ से निवेशक सोने को ज़्यादा पसंद करते थे.
लेकिन हालिया तेज़ी के बाद गोल्ड फ़िलहाल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुका है.
आईबीजेए के मुताबिक़, 14 अक्तूबर को 99.9 फ़ीसदी शुद्धता वाला 10 ग्राम गोल्ड 1,26,152 रुपये में बिक रहा था.
भारतीय शेयर बाज़ारों में भी पिछले साल जैसी तेज़ी नहीं दिख रही है. इस माहौल में चांदी की क़ीमतों में उछाल निवेशकों को अपनी ओर खींच रहा है.
साल 2025 के शुरुआती 9 महीनों में, चांदी में 61 फ़ीसदी की तेज़ी आ चुकी है.
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बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़, जनवरी 2025 में एक औंस चांदी का भाव 28.92 डॉलर था, जो सितंबर के आख़िर तक 46 डॉलर पर पहुंच गया.
शायद यही वजह है कि निवेश के लिहाज़ से चांदी की मांग बढ़ी है. कई जानकारों का मानना है कि सिल्वर की क़ीमतों में तेज़ी फ़िलहाल बनी रह सकती है.
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज़ लिमिटेड में कमोडिटी रिसर्च हेड वंदना भारती बताती हैं कि चांदी अब ज्वैलरी, बर्तन, सिक्कों जैसी चीज़ों के अलावा कई इंडस्ट्रियल चीज़ों में भी इस्तेमाल हो रही है.
सोलर और इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स में इसका ख़ूब इस्तेमाल हो रहा है. लिहाज़ा, चांदी की मांग पहले के मुक़ाबले बढ़ी है.
एआईजेजीएफ़ के नेशनल जनरल सेक्रेटरी नितिन केडिया ने बताया कि कारोबारी ज़रूरतों के अलावा दुनिया भर के रिज़र्व बैंक अपने पास गोल्ड-सिल्वर का रिज़र्व बढ़ा रहे हैं.
टैरिफ़ वॉर और दुनिया में तनाव की वजह से चांदी को सुरक्षित निवेश के तौर पर देखा जा रहा है.
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भारत चांदी की ज़रूरतें आयात से पूरी करता है. नितिन केडिया ने बताया कि आमतौर पर कारोबारी पुराने ट्रेंड को देखकर अंदाज़ा लगाते हैं कि इस साल कितनी डिमांड रहने वाली है, उसी हिसाब से स्टॉक रखा जाता है.
चांदी की क़ीमतें बढ़ रही थीं, इसलिए किसी दुकानदार को ज़्यादा डिमांड आने की उम्मीद नहीं थी. लिहाज़ा ज़्यादा स्टॉक नहीं रखा गया.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2025 के शुरुआती 8 महीनों में चांदी का आयात 42 फ़ीसदी घटकर 3,302 टन पर आ गया था.
केडिया आगे बताते हैं कि चांदी ने जैसे ही एक लाख रुपये प्रति किलो का आंकड़ा पार किया, डिमांड में ऐसी तेज़ी आई, जिसकी दुकानदारों को भी उम्मीद नहीं थी.
आयात में क्या हैं मुश्किलें
वंदना कहती हैं कि 2020-21 से ही दुनिया में चांदी का उत्पादन उस हिसाब से नहीं बढ़ा है जिस हिसाब से डिमांड बढ़ी है. यानी सप्लाई पहले से ही सीमित चल रही है.
अब बाज़ार में पहले से जो चांदी उपलब्ध है उसी की ख़रीद-बिक्री हो सकती है. और इसकी क़ीमतें लंदन बुलियन मार्केट असोसिएशन (एलबीएमए) तय करता है.
ज़बरदस्त मांग को देखते हुए एलबीएमए कारोबारियों से हाई प्रीमियम मांग रहा है.
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वंदना बताती हैं कि मौजूदा समय में चांदी हाज़िर बाज़ार में रिकॉर्ड प्रीमियम पर बिक रही है.
मगर वायदा बाज़ार, जिसमें भविष्य की क़ीमतों के अनुमान पर ट्रेडिंग होती है, उसमें चांदी की क़ीमतें कमज़ोर पड़ रही हैं.
इससे ये संकेत मिलता है कि आने वाले समय में सप्लाई कुछ बढ़ने पर ये प्रीमियम कम होगा लेकिन शायद मांग में तेज़ी बनी रहेगी.

चांदी की क़ीमतें पहले भी रिकॉर्ड स्तरों पर पहुंची हैं, और उस लेवल से बुरी तरह टूटकर नीचे भी आई हैं. क्या इस बार भी ऐसा हो सकता है ?
वंदना का कहना है कि इसकी संभावना कम है.
वे कहती हैं, "इस बार चांदी के दाम बढ़ने के पीछे ठोस कारण हैं. इसलिए क़ीमतों में भारी गिरावट की संभावना काफ़ी कम है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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