अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ़ लगा दिया है. यह नया टैरिफ़ पहले से लागू 25 प्रतिशत टैरिफ़ के साथ जुड़कर कुल 50 प्रतिशत हो जाएगा.
व्हाइट हाउस ने अतिरिक्त टैरिफ़ का आदेश जारी करते हुए कहा है कि 'भारत सरकार अब भी रूस से तेल का आयात कर रही है', इसलिए अतिरिक्त टैरिफ़ लगाया गया है.
यह अतिरिक्त टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो जाएगा.
लेकिन सवाल है कि अमेरिका टैरिफ़ को लेकर ख़ासकर भारत को ही निशाना क्यों बना रहा है, जबकि रूस से तेल खरीदने के मामले में चीन, भारत से कहीं आगे है.
इतना ही नहीं यूरोप से लेकर तुर्की तक कई दूसरे देश भी रूस से तेल खरीद रहे हैं.
जानकारों का मानना है कि भारत को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की तल्ख़ी के कई दूसरे कारण हैं.
एक नज़र डालते हैं एक्सपर्ट के नज़रिए से ऐसी पाँच वजहों पर.
1. ब्रिक्स को लेकर नाराज़गीब्रिक्स, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. इसमें भारत समेत चीन, रूस, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के अलावा ईरान, इथियोपिया, इंडोनेशिया, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हैं.
ये सभी देश डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के पक्ष में हैं, जो राष्ट्रपति ट्रंप को बिल्कुल पसंद नहीं है. वे समय-समय पर ब्रिक्स देशों को 100 प्रतिशत तक टैरिफ़ लगाने की धमकी देते आए हैं.
उनका कहना है कि अगर ब्रिक्स देशों ने अपनी करेंसी चलाने की कोशिश की तो उन्हें अमेरिका से व्यापार को अलविदा कहने के लिए तैयार रहना होगा.
रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद से ही चीन उससे रूबल (रूस की करेंसी) में तेल खरीद रहा है.

अमेरिकी कांग्रेस की रिसर्च सर्विस के मुताबिक 2022 में लगभग आधा अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में हुआ था. डॉलर की वजह से विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका का दबदबा है.
फ़ोर स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में इंटरनेशनल बिज़नेस और भू-राजनीति के प्रोफे़सर फ़ैसल अहमद का मानना है कि ब्रिक्स का विस्तार हो रहा है.
वो कहते हैं, "इसमें अब ईरान भी आ गया है, लोकल करेंसी की बात हो रही है, जिसे लेकर अमेरिका को डर है. डॉलर को तभी कमज़ोर किया जा सकता है जब आप मजबूत होंगे. अगर टैरिफ़ ज्यादा लगेंगे तो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा और अमेरिका का दबदबा बना रहेगा."
वहीं, दूसरी तरफ थिंक टैंक गेटवे हाउस की फेलो नयनिमा बासु कहती हैं, "ब्रिक्स के अन्य देश काफी चीजें लाना चाहते हैं लेकिन वे भारत के सुस्त रवैये के चलते नहीं ला पाते. भारत पर ये आरोप बार-बार लगता है कि वह अमेरिका के कारण ब्रिक्स को कमज़ोर कर रहा है."
वे कहती हैं, "ब्रिक्स के अन्य देश भी अमेरिका पर निर्भर हैं, सिर्फ़ भारत ही अकेला नहीं है. बावजूद इसके भारत को इस तरह के अमेरिकी टैरिफ़ का सामना करना पड़ रहा है."
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अमेरिका कई सालों से भारत के साथ ट्रेड डील करने की कोशिश कर रहा है. राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी यह कोशिश हुई थी, लेकिन बात नहीं बनी.
ट्रंप का मानना है कि भारत के साथ ट्रेड डील अमेरिका के लिए भारतीय बाज़ारों को खोलने का काम करेगी, लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है
नयनिमा बासु कहती हैं, "भारत ट्रेड डील के वादे से पीछे हटा है, हालांकि उसके अपने वाजिब कारण हैं, क्योंकि अमेरिका भारतीय बाज़ार में ज्यादा एक्सेस मांग रहा है."

भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार आठ अरब डॉलर का है, जिसमें भारत चावल और मसाले निर्यात करता है और अमेरिका से मेवे, सेब और दाले मंगवाता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत ने अमेरिका को रियायतें दीं तो वह किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद पहले जैसे नहीं कर पाएगा और यह भारत में एक बड़ा मुद्दा है.
वहीं डेयरी उत्पाद और चावल, गेंहू वो चीजें हैं, जिन पर भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था टिकी हुई है.
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2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली चीन यात्रा करने जा रहे हैं.
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट में शामिल होने के लिए पीएम मोदी चीन जाएंगे. यह दौरा 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होगा.
पिछले साल अक्तूबर में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात की थी.
जून, 2025 में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बीजिंग भी पहुंचे थे. उसके बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर भी चीन गए.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर रेशमी काज़ी का कहना है कि भारत और चीन द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
रेशमी काज़ी कहती हैं, "अमेरिका को अगर कोई देश चैलेंज कर रहा है तो वह चीन है. एक समय इस भूमिका में रूस था, लेकिन अब चीन उसके लिए सबसे बड़ा ख़तरा है. चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका को भारत की ज़रूरत है."
नयनिमा बासु कहती हैं, "भारत और चीन के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हो गई है. मुझे लगता है कि पीएम मोदी के चीन जाने के बाद बीजिंग और दिल्ली के बीच सीधी हवाई सेवा भी शुरू हो जाएगी. चीन इसकी मांग कर रहा है. वीजा पाबंदियां भी आने वाले समय में हट जाएंगी."
वे कहती हैं, "यह सब अमेरिका को पसंद नहीं आ रहा है, रूस से तेल खरीदने को वह सिर्फ़ बहाना बना रहा है. अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद भी कर देता है तो क्या अमेरिका भारत पर टैरिफ़ नहीं लगाएगा?"
बासु का कहना है, "पीएम मोदी जब अमेरिका गए थे तो ट्रंप ने भारत को 'टैरिफ़ किंग' बताया था. इसलिए टैरिफ़ से बचना तो मुश्किल ही था. इतना ज़रूर हो सकता था कि वो एक सीमा में रहे."
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पिछले कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप भारत के प्रति जितना नरम दिखते थे, इस बार उतना ही कड़क नज़र आ रहे हैं.
'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई की थी. हालांकि बाद में दोनों देशों ने संघर्ष विराम का एलान किया था.
राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि सीजफायर उन्होंने कराया है, जबकि भारत ने साफ़ किया है कि इसमें अमेरिका की भूमिका नहीं है.
जम्मू- कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष में बदल गया था.
नयनिमा बासु का कहना है, "ट्रंप चाहते थे कि ऑपरेशन सिंदूर को लेकर पीएम मोदी उन्हें कोई श्रेय दें या कम से कम एक फोन कॉल करें, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, जो एक नाराजगी का कारण दिखाई देता है."
प्रो. रेशमी काज़ी का भी ऐसा ही मानना है. वे कहती हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप नोबेल पुरस्कार जीतना चाहते हैं.
उनका कहना है, "पाकिस्तान, कंबोडिया और इसराइल जैसे देश राष्ट्रपति ट्रंप को शांति का नोबेल देने मांग कर चुके हैं, वहीं भारत इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है."
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टैरिफ़ और नॉन टैरिफ़ के बीच का फर्क व्यापार नीति और आयात-निर्यात के नियंत्रण से जुड़ा है.
प्रोफे़सर फ़ैसल अहमद का कहना है, "जब किसी सामान के आयात-निर्यात पर कर लगता है तो वह टैरिफ़ कहलाता है, वहीं नॉन टैरिफ़ में किसी सामान की मात्रा को सीमित करना, लाइसेंसिंग, जांच और गुणवत्ता नियम जैसी चीजें शामिल होती हैं."
वे कहते हैं, "अमेरिका लंबे समय से नॉन टैरिफ़ नियमों को लेकर नाराजगी जाहिर करता आया है. ट्रंप की भारत के साथ नाराज़गी का ये एक बड़ा कारण है. हालांकि नॉन टैरिफ़ हर देश लगाता है, लेकिन अमेरिका इसमें छूट चाहता है."
प्रो. फ़ैसल कहते हैं, "भारत एक विकासशील देश है, वहीं अमेरिका विकसित. इसलिए दोनों देशों को एक जगह रखकर तुलना नहीं की जा सकती. भारत का ज़ोर घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने पर रहा है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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