पंजाब सरकार ने सोमवार को बाढ़ से प्रभावित किसानों को उनके खेतों में जमा रेत और मिट्टी बेचने की अनुमति दे दी है.
सरकार के मुताबिक़, इस फ़ैसले से किसानों को राहत मिलेगी और "रेत बेचकर" प्रभावित किसान अपने नुकसान की भरपाई कर सकेंगे.
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कैबिनेट बैठक के बाद इस फ़ैसले की जानकारी साझा की.
मुख्यमंत्री ने कहा कि बाढ़ से किसानों के खेतों में जमा रेत बेचने के अधिकार देने के लिए "जिसका खेत, उसकी रेत" योजना को मंज़ूरी दी गई है.
इसके साथ ही उन्होंने कहा, "बाढ़ से तबाह हुई फ़सलों का 20,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा दिया जाएगा. बाढ़ के दौरान जान गंवाने वालों के परिजनों को 4 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी."
भगवंत मान ने यह भी बताया कि किसान खेतों में जमा रेत और मिट्टी का निजी इस्तेमाल कर सकेंगे या अपनी इच्छा से बेच सकेंगे.
दरअसल, बाढ़ से प्रभावित किसानों की यह मांग रही है कि उन्हें अपने खेतों में जमा रेत और मिट्टी बेचने का अधिकार दिया जाए.
पंजाब के खनन मंत्री बरिंदर गोयल के मुताबिक़, प्रभावित ज़िलों के डिप्टी कमिश्नर खेतों से रेत हटाने और बेचने की प्रक्रिया की निगरानी करेंगे.

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पंजाब के 23 ज़िले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. बाढ़ के कारण खेतों में रेत और मिट्टी की मोटी परत जम गई है.
इस परत ने ज़मीन को खेती के लिए अनुपयोगी बना दिया है. ज़मीन को फिर से खेती योग्य बनाने के लिए रेत और मिट्टी की परत हटाना ज़रूरी है.
इसीलिए राज्य सरकार ने नई नीति बनाई है. इस स्कीम के तहत किसान अपने खेतों से रेत और मिट्टी हटाकर ज़मीन को साफ़ कर सकेंगे और फिर उसे बेच भी सकेंगे.
इस नीति के अनुसार किसान अपने खेतों की रेत और मिट्टी बेचकर पैसे ले सकेंगे. इस तरह उन्हें नुक़सान की कुछ भरपाई भी हो सकेगी और ज़मीन भी खेती के लिए तैयार हो जाएगी.

खनन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक़, पर्यावरण के नज़रिए से ज़मीन के मालिक की तरफ़ से तब तक खेत से रेत हटाने को खनन का काम नहीं माना जाएगा, जब तक यह सिर्फ़ खेती के लिए ज़मीन को फिर से तैयार करने के मक़सद से किया जा रहा है.
- बाढ़ की रेत हटाने के लिए किसानों को किसी भी तरह की पर्यावरण मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होगी. इस नीति के तहत सिर्फ़ बाढ़ के बाद जमा हुई रेत ही हटाई जा सकेगी.
- अपनी ज़मीन में जमा रेत बेचने के लिए किसी भी तरह के परमिट की ज़रूरत नहीं होगी.
- रेत बेचने के लिए किसानों से कोई रॉयल्टी नहीं ली जाएगी.
- ज़मीन पर खेती कर रहे किसान को ही रेत बेचने का अधिकार होगा.
- यह नीति सिर्फ़ बाढ़ प्रभावित इलाकों में ही लागू होगी.
- ज़िले के डिप्टी कमिश्नर की अगुवाई में प्रभावित ज़मीनों की पहचान होगी.
- रेत हटाने के अलावा खुदाई करके की जाने वाली खनन को अवैध माना जाएगा.
बाढ़ के बाद किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती ज़मीन को फिर से खेती योग्य बनाना होती है. बाढ़ के बाद खेतों में रेत और गाद जम जाती है.
खेतों से रेत और गाद हटाना मुश्किल, लंबी और महंगी प्रक्रिया है.
किसानों के मुताबिक़, पहले उन्हें अपने खेतों की रेत और गाद बेचने की इजाज़त नहीं थी. सरकार इसे अवैध खनन का हिस्सा मानती थी.
किसानों को अपने खेतों से रेत हटाने के लिए उसे खेत के एक कोने में ढेर लगाना पड़ता था. इससे बाढ़ से पहले ही नुक़सान झेल चुके किसानों पर और आर्थिक बोझ पड़ता था.
सरकार का कहना है कि किसानों की लंबे समय से यह मांग थी कि उन्हें अपने खेतों में जमा रेत और मिट्टी बेचने की अनुमति दी जाए.
खनन विभाग के डायरेक्टर अभिजीत कपलिश ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "अपने खेतों से रेत या मिट्टी हटाने के लिए किसानों को किसी भी तरह के परमिट की ज़रूरत नहीं होगी."
"अपने खेतों से रेत हटाने के लिए किसानों से कोई भी रॉयल्टी नहीं ली जाएगी. किसान 31 दिसंबर तक अपनी ज़मीन से रेत और मिट्टी हटा सकेंगे."
पंजाब में छोटे किसान ज़मीन ठेके पर लेकर खेती करते हैं. इन किसानों को भी बाढ़ से नुकसान हुआ है.
कई प्रभावित किसानों ने ज़मीन मालिकों को पहले ही ठेके की तय रकम अदा कर दी थी.
इन किसानों का सवाल था कि खेतों में जमा रेत बेचने का अधिकार किसे होगा.
इस सवाल पर पंजाब के खनन मंत्री बरिंदर गोयल ने बीबीसी से कहा, "इस पॉलिसी में ज़मीन पर खेती कर रहे किसान को ही मालिक माना गया है. इसलिए रेत बेचने का अधिकार उसी किसान को होगा जो ज़मीन पर खेती कर रहा है."
किसान कब तक रेत बेच सकेंगे?खनन विभाग के डायरेक्टर अभिजीत कपलिश ने बीबीसी को बताया कि किसान 31 दिसंबर तक अपने खेतों से रेत हटा और बेच सकेंगे.
जबकि खनन मंत्री बरिंदर गोयल का कहना है कि किसान अगले आदेश तक रेत हटा और बेच सकेंगे.
प्रभावित किसानों ने क्या कहा?बाढ़ पीड़ित किसान संघर्ष कमेटी पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष जसबीर सिंह ने बताया कि उनके गांव गट्टा बादशाह में उनकी क़रीब 25 एकड़ ज़मीन बाढ़ से प्रभावित हुई है.
उन्होंने कहा, "जब तक नोटिफिकेशन जारी नहीं होता और नीति ज़मीन पर लागू नहीं होती, हम सरकार पर भरोसा नहीं करेंगे. हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे."
"अगर सरकार रेत हटाने या बेचने की समयसीमा तय करती है तो हम इसका विरोध करेंगे. अभी पानी पूरी तरह सूखा नहीं है. बाद में रेत हटाने और बेचने में समय लगेगा."
फ़िरोज़पुर ज़िले के दुलेवाला गाँव के किसान जरनैल सिंह ने कहा कि उनकी क़रीब 13 किले ज़मीन में बाढ़ से फ़सल पूरी तरह नष्ट हो गई है.
उन्होंने कहा, "अगर सरकार का यह फ़ैसला लागू होता है तो हमारे नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो सकती है."
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