देश में 'भूतिया जगह' का नाम आते ही सबसे पहले जेहन में अलवर के भानगढ़ किले का नाम आता है। भानगढ़ किला देश की राजधानी दिल्ली और राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास अलवर के सरिस्का इलाके में स्थित है। इस किले में कई मंदिर, बाजार, घर, बगीचे और राजा-रानी के महल हैं। लेकिन कुछ भी या कोई इमारत सुरक्षित नहीं है। मंदिर की मूर्ति से लेकर पूरे किले की दीवार तक टूटी हुई है। कहा जाता है कि यह एक श्राप के कारण बिना बने ही टूट गई थी। भानगढ़ किले को भूतों की नगरी भी कहा जाता है।
वैसे तो यहां घूमने के लिए हजारों पर्यटन स्थल हैं। लेकिन जब मन में कुछ अलग चाहिए होता है। तभी तो यहां भूतों की नगरी भानगढ़ है। जयपुर से महज 80 किलोमीटर और दिल्ली से करीब 300 किलोमीटर दूर अलवर के सरिस्का वन क्षेत्र के पास भानगढ़ किला दुनिया में भूतिया जगह के तौर पर जाना जाता है इन मंदिरों और गुफाओं की नक्काशी इसके इतिहास और वैभव को बयां करती है। यह किला भव्य और खूबसूरत है। लेकिन पूरा किला खंडहर हो चुका है। हालांकि, एक तांत्रिक के श्राप के कारण यह किला नष्ट हो गया और इसमें रहने वाले सभी लोगों की आत्माएं उस किले में भटक रही हैं। इस किले की यात्रा एक अलग ही अनुभव देती है। शाम होते ही किला खाली हो जाता है और यहां किसी को रहने की इजाजत नहीं होती।
कैसा श्राप!
भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बेहद खूबसूरत थी। राजकुमारी की खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में थी। रत्नावती के लिए कई राज्यों से विवाह के प्रस्ताव आए। इसी दौरान एक दिन राजकुमारी किले से अपनी सहेलियों के साथ बाजार घूमने निकली। वह बाजार में एक इत्र की दुकान पर पहुंची और हाथ में इत्र लेकर उसकी खुशबू सूंघ रही थी। उसी समय दुकान से कुछ दूरी पर सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा होकर राजकुमारी को देख रहा था। सिंधु इसी राज्य का रहने वाला था और वह काला जादू जानता था और इसमें माहिर था। राजकुमारी के रूप को देखकर तांत्रिक उस पर मोहित हो गया और राजकुमारी से प्रेम करने लगा तथा राजकुमारी को जीतने के बारे में सोचने लगा। लेकिन रत्नावती ने कभी उसकी ओर मुड़कर नहीं देखा। जिस दुकान से राजकुमारी इत्र खरीदने जाती थी। उसने दुकान में रत्नावती के इत्र पर काला जादू किया तथा उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया।
जब राजकुमारी को सच्चाई का पता चला। तो उसने इत्र की बोतल को हाथ नहीं लगाया तथा पत्थर पर मारकर उसे तोड़ दिया। इत्र की बोतल टूट गई तथा इत्र बिखर गया। वह काले जादू के प्रभाव में था। इसलिए पत्थर सिंधु सेवड़ा के पीछे चला गया तथा पत्थर ने जादूगर को कुचल दिया। इस घटना में जादूगर की मृत्यु हो गई। लेकिन मरने से पहले उसे तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग शीघ्र ही मर जाएंगे तथा दोबारा जन्म नहीं लेंगे। उनकी आत्मा इस किले में भटकती रहेगी। तब से इस किले में रात में कोई नहीं रहता। कहा जाता है कि यहां रात में भूत रहते हैं तथा कई प्रकार की आवाजें सुनाई देती हैं।
सूर्यास्त के बाद लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है
वर्तमान में भानगढ़ किला भारत सरकार की निगरानी में है। किले के आसपास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक टीम मौजूद है। रात में यहां किसी को रुकने की अनुमति नहीं है। खुदाई के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इस बात के प्रमाण मिले कि यह एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर था। भानगढ़ किले की कहानी कहानी में और भी दिलचस्प है। 1573 में आमेर के राजा भगवानदास ने भानगढ़ किले का निर्माण करवाया था। यह किला 300 साल की बसावट तक आबाद रहा। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मानसिंह के छोटे भाई राजा माधव सिंह ने भानगढ़ किले को अपना निवास स्थान बनाया। भानगढ़ किले को भूटिया किले के नाम से भी जाना जाता है। इसकी कई कहानियां हैं। इसलिए यहां लाखों लोग घूमने आते हैं। इस जगह को पैरानॉर्मल एक्टिविटीज का केंद्र भी माना जाता है।
भानगढ़ कैसे पहुंचें?
इस किले में घूमने का समय सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक है। इसके बाद यहां जाने की अनुमति नहीं है। जयपुर से किले की दूरी करीब 80 किलोमीटर है। दिल्ली से यह करीब 300 किलोमीटर दूर है। किला सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इसलिए ट्रेन से आने के लिए आपको अलवर स्टेशन पहुंचना होगा और वहां से टैक्सी की मदद से आप भानगढ़ पहुंच सकते हैं।
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